प्राचीन अनुबन्धन - Ancient Covenant
प्राचीन अनुबन्धन उद्दीपक - प्रक्रिया के बीच साहचर्य स्थापित होने की घटना का स्पष्टत उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसके प्रयोग मूलतः पवलाव ही हैं। इन्होंने एक कुत्ते पर प्रयोग करके अनुबंधन की धारणा का विकास किया।
पवलाव का प्रयोग
पावलाव जो एक रूसी दैहिक शास्त्री थे, देखा कि कुत्ते की दृष्टि भोजन पर पड़ते हो। उसके से लार स्रावित होने लगा। पवलाव ने अपने प्रयोग में कुत्ते के गाल में शल्य चिकित्सा द्वारा ऐसा छिद्र किया जिससे कि पैरोटिड ग्रन्थि से लार निकल कर रबड़ की नली से होते हुए एक पात्र में एकत्र हो जाय जिसमें एक बूंद के दसवें भाग तक के लार की मात्रा मापी सके।
साथ ही कुत्ते को प्रयोगशाला में परिचित कराया (अभ्यस्त कराया) तथा प्रयोग की जाने वाली मेज पर (ढीले-ढाले जुवा) उसके शरीर को फीते से इस प्रकार बाँध रह किसी प्रकार की गति न कर सके। कुत्ते को भूखा रखा गया था ताकि वह भोजन लार स्त्रावित करने लगे। भोजन उसें घण्टी की ध्वनि के तुरन्त बाद दिया गया।
ध्वनि के पश्चात् प्रथम प्रयास में लार बिल्कुल नहीं निकला किन्तु खाते समय प्रचुर मात्रा में लाव करता था। पहले घण्टी की आवाज उत्पन्न करना फिर भोजन देने की क्रिया को कई बार दुहराया। इस प्रशिक्षण से कुत्ते ने घण्टी की ध्वति एवं भोजन में साहचर्य स्थापित कर लिया जो अनुक्रिया (लार बहाने की) भोजन के प्रति करता था उसे घण्टी की ध्वनि के साथ लगा।
तीस प्रयासों के पश्चात् अनुबन्धित क्रिया की मात्रा बढ़ती गयी तथा प्रतिक्रिः काल कम होता गया अर्थात् जो अनुक्रिया ध्वनि प्रारम्भ के 18 सेकेण्ड बात होता या वह एक या दो सेकेण्ड बाद ही प्रचुर मात्रा (लार-स्राव) में होने लगा।
इस प्राचीन अनुबन्धन के प्रयोग से स्पष्ट है कि भोजन (उद्दीपक) स्वाभाविक रूप से लार-स्राव की अनुक्रिया को उत्पन्न करता है इसको अनुबन्धन की भाषा में अनानुबन्धित उद्दीपक कहते हैं।