जनमत क्या है? What is Referendum in Hindi?

जनमत क्या है? जनमत निर्माण के साधनों का वर्णन कीजिए | What is referendum? Describe the means of public opinion formation

जनमत का अर्थ

प्रजातन्त्र का आधार जन-सम्प्रभुता है । ठीक ही उसे जनमत पर आधारति सरकार कहा गया है। इसमें सम्प्रभुता सम्पूर्ण जनता में निवास करती है। जनता की इच्छा को यह शासन व्यवस्था कार्यान्वित करती है। जनता की इच्छा के संगठित रूप को जनमत कहते हैं । यदि सरकार जनमत के अनुसार शासन संचालन नहीं करती है तो वह अप्रजातान्त्रिक होगी । तात्पर्य यह है कि प्रजातन्त्र शासन जनता की इच्छा या जनमत का दर्पण है ।

जनमत क्या है? What is Referendum in Hindi?

अतः जनमत का अध्ययन राजनीतिक-शस्त्र के विद्यार्थियों के लिये बड़ा ही महत्वपूर्ण है । विभिन्न विद्वानों ने जनमत की परिभाषा देने की चेष्टा की है । लेकिन अधिकांश परिभाषाएँ एक - दूसरे से भिन्न तथा अस्पष्ट हैं । इसीलिए रोसक ने कहा है कि “ जनमत एक ऐसा शब्द है कि इसकी परिभाषा देने के बजाय इसका अध्ययन होना चाहिये । केरोल का कहना है कि “ जनमत शब्द स्पष्ट परिभाषा के परे है । " कुछ विद्वानों की परिभाषाएँ यों है 


( 1 ) ब्राइस- " जनमत मनुष्यों के उन विभिन्न दृष्टिकोणों का योगमात्र है जो उन सार्वजनिक हितों से सम्बद्ध विषयों के बारे में रूचि रखते हैं । 


( 2 ) लिपमैन - " जनमत लोगों के मस्तिष्क की वे धारणाएँ हैं जो ये अपने बारे में दूसरों के बारे में तथा अपनी आवश्कयताओं , उद्देश्य एवं सम्बन्ध के बारे में रखते हैं । " 


( 3 ) रोसक- " जनमत किसी विशेष समय या स्थान में प्रचलित प्रभावपूर्ण विभिन्न एवं पारस्परिक विरोधी विचाराधाराओं के आधार पर बना हुआ सर्वमान्य समान है । यह उन समस्याओं के सम्बन्ध में , जो विवादस्पद है परन्तु जिनका सम्बन्ध समूचे समूह से है , उस समूह के सदस्यों द्वारा अभिव्यक्त अपेक्षाकृत एक रूप वरेण्यता है । "


( 4 ) साल्टाऊ- " इस शब्द का प्रयोग साधारणतः उन विचारों की इच्छाओं के सम्बन्ध में किया जाता है जो जनता अपने सामान्य जीवन के सम्बन्ध में रखती


( 5 ) डूब -" जनमत का है एक ही सामाजिक समूह के रूप में जनता किसी प्रश्न या समस्या के प्रति रूख या विचार । "


स्वस्थ जनमत के निर्माण के लिए निम्नांकित शर्तें आवश्यक हैं -

( क ) बिना किसी रूकावट के तथ्यों की पूरी जानकारी,

( ख ) निष्पक्ष दृष्टिकोण शान्त विचार और प्रौढ़ विवेक,

( ग ) व्यक्ति तथा चरित्र की स्वतन्त्रता और

( घ ) गलत आधार पर आधारित राजनीतिक दल, साम्प्रदायिक, भाषापरक संगठन इत्यादि।


इसके अलावा भी अनेक दशाओं का रहना आवश्यक है । इन सभी शर्तों को इस प्रकार सूचीबद्ध किया जा सकता हैं


( 1 ) शिक्षा का पर्याप्त प्रसार

स्वस्थ जनमत के लिए देश के नागरिकों को सुशिक्षित होना अनिवार्य है । सुशिक्षा के अभाव में नागरिकों के व्यक्तित्व तथा मानसिक परिधि का विकास नहीं हो सकता है । मानसिक संकीर्णता से बौद्धिक तथा चारित्रिक विकास अवरूद्ध हो जाता है ।


अज्ञानता के चलते जनता देश की राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं को समझने में असमर्थ रहती है । उसमें आदर्श नागरिकता के गुण नहीं आ पाते। अतः स्वस्थ जनमत के लिए अधिक-से-अधिक शिक्षा का प्रसार आवश्यक है ।


( 2 ) आदर्श शिक्षा प्रणाली

जनता को चेतनशील तथा विवेकपूर्ण बनाने के लिए एक आदर्श शिक्षा भी अनिवार्य है । सिर्फ शिक्षा प्रणाली का प्रसार ही आवश्यक नहीं , बल्कि आदर्श शिक्षा उपलब्ध होनी चाहिए । आदर्श शिक्षा से आदर्श नागरिक के गुणों का विकास होता है तथा जनता प्रबुद्ध होती है । लेकिन आदर्श शिक्षा के लिए आदर्श प्रणाली होनी चाहिये ।


शिक्षा पद्धति ऐसी होनी चाहिये जिससे बौद्धिक संकीर्णता तथाविचारों की संकुचितत दूर हो, सम्प्रदायिकता, जातीयता, धार्मिकताअ आदि भेद - भाव मिट जायें और दाया, परोपकार देश - प्रेम, त्याग, सहयोग आदि मानवीय गुणों का विकास हो । निष्कर्षतः शिक्षा पद्धति से नागरिकों की विचार परिधि का विस्तार होगा और प्रबुद्ध जनमत का निर्माण होगा ।


( 3 ) निष्पक्ष समाचार - पत्र

स्वतस्थ जनमत के लिए समाचार पत्रों को निष्पक्ष , स्वतन्त्र तथा निर्भीक होना चाहिये । यदि प्रोस स्वतन्त्र न हो औरकिसी विशेष वर्ग, वल या सम्प्रदाय के नियन्त्रण में हो, तो वह मिथ्या एवं कुत्सित समाचारों और विकारों का प्रचार करेगा जिससे जनमत विषाक्त होगा । 


( 4 ) निर्धनता का अन्त -निर्धनता

स्वस्थ के भार से दबे व्यक्ति से आदर्श नागरिकता के गुणों की आशा करना निरी मूर्खता है । गरीब व्यक्ति सदा की ज्वाला को शान्त करने के चक्कर में ही पड़ा रहता है । न तो उसके पास इतना समय है कि वह किसी समस्या पर उचित रूप से सोच सके और न इतना पैसा है कि उचित शिक्षा पा सके ।


पेट के संघर्ष में यह अपने अधिकारों तथा स्वतन्त्रता की बात भूल जाता है। उसका विचार सवतन्त्रय समाप्त हो जाता है, वह धनी वर्ग का गुलाम बन जाता है । तात्पर्य यह है कि निर्धनता स्वस्थ जनमत के मार्ग में बहुत बड़ी रूकावट है। अतः देश से गरीबी नाश होना चाहिये तथा समाज में आर्थिक समानता रहनी चाहिए तभी स्वस्थ जनमत की आशा की जा सकती है ।


( 5 ) साम्प्रदायिकता का अन्त

साम्प्रदायिक भावना के कारण समाज के विभिन्न वर्ग निरंतर एक संघर्षपूर्ण अवस्था में रहते हैं । देश में शान्ति , सहयोग तथा सहानुभूति की भावना का प्रसार नहीं हो सकता है । शान्ति तथा पारस्परिक सद्भावना में एक स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष विचारधारा का निर्माण एक कोरी कल्पना है । अतः उच्च जनमत के लिये धार्मिक कट्टरता , साम्प्रदायिकता , जातीयता आदि संकीर्णताओं का अन्त होना चाहिये । 


( 6 ) राजनीतिक दलों का उचित सैद्धान्तिक आधार

जनमत के निर्माण के लिये राजनीतिक दल एक महत्वपूर्ण साधन है । ये लोगों की संकीर्णता को दूर करते, उनका ध्यान राष्ट्रीय हित की ओर आकर्षित करते, वाद - विवाद तथा विचार - विनिमय द्वारा जनता को लोकमत निर्माण करने में सहयोग प्रदान करते हैं ।


अतः राजनीतिक दलों को जाति, सम्प्रदाय, वर्गीहित आदि संकीर्णताओं को त्याग कर विस्तृत आर्थिक, राजनीतिक तथा राष्ट्र हित सम्बन्धी सिद्धान्त के आधार पर संगठित होना चाहिये तभी वे स्वस्थ जनमत के निर्माण में सहायक सिद्ध हो सकते हैं । 


निष्कर्ष

जनमत लोकतन्त्र के वास्तविक स्वरूप को सुरक्षित रखता है । और जनमत का अभाव लोकतन्त्र के व्यावहारिक रूप को विकृत कर देता है । डॉ० आशीर्वाद्म के शब्दों में , “ जागरूक और सचेत जनमत स्वस्थ प्रजातन्त्र की प्रथम आवश्यकता है । " आधुनिक लोकतन्त्रीय राज्यों में जनमत के महत्व के कारण ही प्रचार के विभिन्न साधनों पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता है जिससे जनता राजनीतिक विचारों का निर्माण एवं निर्देश किया जा सके।


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