आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली क्या है ? | What is proportional representation system?
अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने वाली महत्वपूर्ण पद्धति आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली है। जे० एस० मिल इस प्रणाली के प्रबल समर्थक हैं। इस प्रणाली का विशेष गुण यह है कि इससे विधान मण्डलों में सभी राजनैतिक दलों को चुनाव मैं उनके दलों को मिले हुए मतों के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिल जाता है ।
आनुपातिक प्रतिनिधित्व की दो प्रणालियों प्रचलित हैं ।
( अ ) हेयर की एकल संक्रमणीय मत प्रणाली
( ब ) सूची प्रणाली
( अ ) हेयर की एकल संक्रमणीय मत प्रणाली
इस प्रणाली का प्रतिपादक ब्रिटिश विद्वान थामस हेयर था । उसने 1851 ई 0 में इस प्रणाली को जन्म दिया । 1855 ई ० में डेनमार्क के मन्त्री एन्ड्रे ने इस प्रणाली को अपने देश में अपनाया । अतः कोई - कोई विद्वान इसे हेयर प्रणाली तथा कोई - कोई इसे एन्ड्रे प्रणाली कहते हैं इसी प्रणाली को मत वरीयता प्रणाली भी कहते हैं , परन्तु इसका प्रसिद्ध नाम एकल संक्रमणीय प्रणाली है । आज प्रजातांत्रिक अनेक देशों में इस प्रणाली का प्रयोग किया जा रहा है ।
( ब ) सूची प्रणाली
यह प्राणी भी उन निर्वाचन क्षेत्रों में लागू होती है जहाँ एक से अधिक सदस्य निर्वाचित होते हैं । इस प्रणाली में निर्वाचन उम्मीदवाद के व्यक्तिगत रूप में न होकर दलीय आधार पर होता है । इस प्रणाली में अल्पसंख्यक दल का भी प्रतिनिधित्व हो जाता है तथा यह प्रणाली स्वीडन , डेनमार्क , नार्वे , वेल्जियम आदि दोशों में प्रचलित है । इस प्रणाली में प्रत्येक दल अपने - अपने उम्मीदवारों की सूची तैयार कर लेता है । इस सूची में उतने ही नाम रखे जाते हैं जितने की प्रतिनिधि निर्वाचित होते हैं । मतदाता अपने रकम किसी भी दल की पूरी सूची के पक्ष में दे देता है ।
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के गुण
( 1 ) इसमें अस्पसंख्यकों को समुचित प्रतिनिधित्व मिलता है
प्रजातन्त्र में प्रत्येक वर्ग का प्रतिनिधित्व होना चाहिए । अल्पसंख्यकों को समुचित प्रतिनिधित्व प्रदान करने वाली यह एक महत्वपूर्ण प्रणाली है । जे ० एस ० मिल के शब्दों में " एक सच्चे जनतन्त्र में प्रत्येक वर्ग का आनुपातिक प्रतिनिधित्व होना चाहिए । बहुसंख्यक निर्वाचकों के अधिक प्रतिनिधि होंगे लेकिन अल्पसंख्यकों के भी तो आनुपातिक संख्या में कम प्रतिनिधि होना चाहिए । यदि ऐसा नहीं है तो वह सरकार न तो लोकतन्त्रात्मक है और न ही न्याय संगत ।
( 2 ) आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में राजनीतिक दलों को समुचित प्रतिनिधित्व मिलता है
इस प्रणाली के अनुसार राजनैतिक दलों को उनको प्राप्त हुए मतों के अनुसार प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाता है जिस दल के जितने मानने वाले मतदाता होंगे उसी के अनुपात में उसे स्थान प्राप्त हो जायेंगे । इस प्रकार विरोधी दल भी अपना अस्तित बनाये रखने में सफल रहते हैं ।
( 3 ) आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में बहुमत की निरंकुशता का भय नहीं रहता है
अधिकतर यह देखा गया है कि जिस दल के बहुसंख्यक मतदाता अनुयायी होते हैं वह विजयी होता है, वह बहुमत में होने के कारण निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी हो जाता है तथा वह शासन में अल्प मतों के हितों का ध्यान नहीं रखता है । लेकिन यह प्रणाली बहुमत दल को निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी बनाने से रोकती है । इस प्रणाली के कारण अल्पमत को बहुमत के अत्याचारी शासन का भय नहीं रहता है ।
( 4 ) आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में कोई मत व्यर्थ नहीं जाता है
यह प्रणाली वरीयता पर आधारित होने के कारण मत की सार्थकता पर जोर डालती है । इसमें कोई भी मत बेकार नहीं जाता है । यदि किसी भी मतदाता का प्रथम वरीयता का उम्मीदवार नहीं चुना गया तो दूसरी , तीसरी या चौथी वरीयता का उम्मीदवार तो चुना ही जायेगा ।
( 5 ) आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में दिया गया मत विशेष पर आधारित होता है
अन्य प्रणालियों में मतदाता को निर्वाचन में खड़े हुए उम्मीदवारों में से किसी एक को चुनना पड़ता है । कभी - कभी वह दो व्यक्तियों को अच्छा समझता है , लेकिन उनमें थोड़ा सा अन्तर समझता है । अतः वह किसी एक को स्वार्थ की भावना या अन्य दबाव की भावना से प्रेरित होकर मत दे देता है । इस प्रणाली में मतदाता अपनी विवेक बुद्धि से उम्मीद्वार की योग्यता के अनुसार वरीयता निर्धारित करता है । वरीयता निर्धारण करने में वह बुद्धि से कार्य लेता है । अतः प्रणाली विवेक पर आधारित है ।
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के दोष
( 1 ) यह प्रणाली जटिल है
साधारण मतदाता इस प्रणाली को समझने में तथा इसकी गणना करने की पद्धति को समझ नहीं पाता । अतः यह दोषपूर्ण है ।
( 2 ) यह प्रणाली अशिक्षितों के लिए अनुपयोगी है
इस प्रणाली में अशिक्षित अपनी वरीयता नहीं दे सकते क्योंकि वे पढ़े नहीं होते हैं । वैसे मत तो वे मुहर लगाकर दे देते हैं ।
( 3 ) इस प्रणाली से स्थायी सरकारें स्थापित नहीं हो पाती हैं
प्रजातन्त्र बहुमत पर आधारित होता है । इस प्रणाली में विभिन्न दलों में सदस्य बॅट जाते हैं , अतः स्पष्ट बहुमत किसी दल का नहीं होता है । कभी - कभी कई दल मिलकर सरकार बनाते हैं , लेकिन उनमें मतभेद होने पर सरकार का पतन होता है अतः यह प्रणाली दोषपूर्ण है ।
( 4 ) इस प्रणाली में मतदाता और उम्मीदवारों में सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता
इस प्रणाली में निर्वाचन क्षेत्र बड़े - बड़े होते हैं तथा एक एक निर्वाचन क्षेत्र में कई उम्मीद्वार होते हैं , अतः उम्मीद्वार व्यक्तिगत रूप से मतदाताओं से सम्पर्क स्थापित नहीं कर पाते । सम्पर्क स्थापित न होने से मतदाता वरीयता देने में विवेक से काम नहीं ले पाता ।
निष्कर्ष-
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के गुण-दोषों का विवेचन करने से यह स्पष्ट है कि यह प्रणाली अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व तो देती है लेकिन इसमें दोष की बहुतायत है । यह अशिक्षितों के लिए अनुपयोगी तथा सरकारों को स्थायित्व प्रदान करने में असफल होती हैं । फ्रांस , जर्मनी आदि ने इस प्रणाली के दोषों को ही देखकर इसे त्याग दिया । फिर भी आज संसार में बहुत से देश इस प्रणाली को मानते हैं । अल्पसंख्यकों के हितों की यह प्रणाली रक्षक है।
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