प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष के कार्य एवं शक्तियाँ | Functions and Powers of Speaker of the House of Representatives
ब्रिटिश या भारतीय लोकसभा की तरह अमरीकी प्रतिनिधि सभा का भी एक अध्यक्ष होता है, जिसे स्पीकार ( Speaker ) कहा जाता है। संविधान में प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष की शक्तियों, अधिकारों एवं कर्तव्यों के विषय में कुछ नहीं कहा गया है । सिर्फ इतना ही कहा गया है कि " प्रतिनिधिगण सदन के सभापति तथा अन्य अधिकारियों का चुनाव करेंगे । " ( अनुच्छेद 1. खण्ड 2 ) । इस प्रकार संविधान में यह नहीं कहा गया है कि अध्यक्ष अनिवार्यतः सभा का सदस्य हो ही, लेकिन व्यवहार में अभी तक जितने अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं, वे प्रतिनिधि सभा का सदस्य ही रहे हैं।
प्रत्येक नयी प्रतिनिधि सभा के प्रारम्भ में अध्यक्ष का निर्वाचन होता है। अतः अध्यक्ष का कार्याकाल प्रतिनिधि सभा के कार्यकाल के साथ दो वर्ष तक का होता है। सभा में निर्वाचन केवल औपचारिक होता है। वस्तुतः बहुमत दल या पूर्व निश्चित कर लेता है कि उसका कौन सदस्य अध्यक्ष होगा। इस प्रकार निर्वाचन दलीय आधार पर होता है।
अध्यक्ष बहुमत दल का विशिष्ट नेता है लेकिन इसके विपरीत, ब्रिटिश लोकसभा अध्यक्ष निर्दलीय होता है तथा सर्वसम्मति से चुना जाता है इसके अतिरिक्त ब्रिटिश संविधान में इस परम्परा का विकास हुआ है कि जो व्यक्ति एक अध्यक्ष हो जाता है , वह सदैव अध्यक्ष बना रहता है लेकिन अमेरिका में यह आवश्यक नहीं कि पुरूगामी प्रतिनिधि सभा का अध्यक्ष पुनः अध्यक्ष निर्वाचित हो । दल के बहुमत में आने पद ही निर्वाचित हो सकता है। अन्यथा नहीं।
प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष के शक्तियाँ ( Powers of Speaker of the House of Representatives )
प्रारम्भ में प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष की शक्तियाँ बहुत व्यापक थी। वह सभी स्थायी समितियों एवं प्रचार समितियों की नियुक्ति करता था । विधान का प्रारूप तैयारी करने में सबसे अधिक उसी का हाथ रहता था । निगम समिति के सभापति होने के नाते वह उन्हीं विधायी नियमों को विचारार्थ सम्मिलित करता था जिनको वह पास करना चाहता था । इसके अतिरिक्त किसी विषय पर वाद - विवाद के लिए अनुमति देना उसी के हाथ में था ।
इस प्रकार सदन के अंदर उसकी स्थिति एक तानाशाह की तरह हो गयी थी। ऑग के शब्दों में " एक साधारण सी चेयरमैनशिप विकसित होकर एक शक्तिशाली तानाशाह बन गयी थी, जिसके हाथ में सदन द्वारा दिये जाने वाले कार्यों का पूरा अधिकार आ गया था। " टॉमस रीड जोसेफ जी केनन आदि अध्यक्षों की स्थिति के तानाशाह से क्रम नहीं था । रीड को ' जार रीड' और केनन को 'अंकल जी ' कहा जाने लगा था केनन से वाद - विवाद सम्बंधी अधिकार पर अनेक बार निषेधाधिकार का प्रयोग किया और गुप्त रूप से परामर्श के बाद किसी को वाद - विवाद में भाग लेने की स्वीकृति देने लगा।
अतः 1910 ई. में केनन के विरुद्ध सभा में विद्रोह हुआ। फलस्वरूप अध्यक्ष के अनेक महत्वपूर्ण अधिकार छीन लिये गये वाद - विवाद के नियमों में कई परिवर्तन हुआ । अध्यक्ष को कुछ समितियों से हटा दिया गया । स्थायी समितियों का चुनाव प्रतिनिधि सभ करने लगी । अध्यक्ष की स्वीकृति का अधिकार भी छीन लिया गया । इन क्रान्तिकारी संशोधनों के फलस्वरूप अध्यक्ष शक्तिहीन हो गया । फिर भी, आजकल में वह अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करता हैं । वह सदन की बैठकों की अध्यक्षता करता है , सदन की कार्यवाही को नियमित एवं व्यवस्थित करता है और सदन में सुव्यवस्था बनाये रखता है, सदन में कोलाहाल, विघ्न या नियम भंग जैसी अवस्थाओं का नियंत्रित करता है।
इन स्थितियों में वह सदन की कार्यवाही को स्थापित कर सकता है और सदन के सशस्त्र परिचारक को सदन की अशांति को दूर करने की आज्ञा दे सकता है । वह सदन के नियमों का निगरानी करता है । सदेने के सुस्थापित पूर्णभाषियों ( Established preceduents ) को ध्यान में रखते हुए नये पूर्वभावी की रचना कर सकता है अध्यक्ष मतगणना करता है और सदन द्वारा आदेशित अधिनियमों, निवेदनों, संयुक्त प्रस्तावों, आदेश लेखों , अधिपत्रों आदि पर हस्ताक्षर करता है ।
इन कार्यों के अतिरिक्त और प्रवर समितियों तथा सम्मेलन समितियों की नियुक्ति करता है, विधेयकों को समितियों के पास भेजता है या नहीं भेजने का निर्णय देता है। अध्यक्ष अन्य सदस्यों की तरह भाषण दे सकता है या अपना विचार व्यक्त कर सकता है, लेकिन मतदान सिर्फ अनिर्णायक स्थिति में ही सकता है। सके विपरीत ब्रिटिश लोक - सभा का अध्यक्ष वाद - विवाद में भाग नहीं लोता है । सिर्फ निर्णायक मत देता है ।
प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष की स्थिति
इस प्रकार यद्यपि 1911 ई. की क्रान्ति के फलस्वरूप प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष की शक्तियों में भारी कमी हुई है, फिर भी उसके पद का अमरीकी राजनीतिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है। फाइनर के शब्दों में " 1911 ई . के पहले प्रतिनिधि सभा के नेतृत्व का भार अध्यक्ष तथा उसके कुछ मित्रों के हाथ में केन्द्रित था, अब उसके कुछ मित्रों और उसमें केन्द्रित हैं ।
इस सम्बंध में यह कहा जा सकता है कि इस नेतृत्व का सामूहिक कारण हो गया यद्यपि इस समूह में अभी अध्यक्ष की प्रमुखता है । " 1911 ई . के पहले उसकी राजनीतिक महत्ता सिर्फ राष्ट्रपति से कम था , कभी - कभी तो वह राजनीतिक महत्ता में राष्ट्रपति का प्रतिद्वन्द्वी भी हो जाता था । अभी भी जैसा कि वियर्ड ने कहा है " वह प्रभाव क्षेत्र की भुजा को सम्भालता है । यदि वह शक्तिशाली व्यक्तित्व वाला हो तो सरकार के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों की गिनती में आता है । "
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