US presidential election system in Hindi

अमेरिकी राष्ट्रपति के निर्वाचन पद्धति | US presidential election system

अमेरिकी राष्ट्रपति के निर्वाचन की पद्धति के सम्बन्ध में संविधान निर्माताओं के भिन्न-भिन्न विचार थे। मुख्य प्रश्न राष्ट्रपति के निर्वाचन के साधन का था । संविधान निर्माताओं ने बड़ी सतर्कता से यह विचार किया था और ऐसा प्रबन्ध करना चाहा जो राष्ट्रपति के पद को लोकप्रिय आधार देता हुआ भी उसे निरंकुश न होने दे। कुछ प्रतिनिधियों ने यह विचार व्यक्त किया कि राष्ट्रपति के चुनने का अधिकार कांग्रेस दिया जाये ।


पहले यह विचार मान लिया गया परन्तु कालान्तर में जब यह ज्ञात हुआ कि इस प्रणाली से “ प्रतिबन्धों और संकुचन " की व्यवस्था में गड़बड़ी उत्पन्न हो जायेगी तो इस सुझाव को अस्वीकार कर दिया गया । कुछ प्रतिनिधियों ने सुझाव दिया कि जनता ही प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति को चुने परन्तु बहुमत ने इसका विरोध किया क्योंकि उसे भय था कि यदि यह प्रणाली अपना ली गई तो राष्ट्रपति पद के लिए दम्भी व्यक्तियों के चुने जाने की सम्भावना बनी रहेगी । अन्त में राष्ट्रपति के निर्वाचन की अप्रत्यक्ष प्रणाली स्वीकृत कर ली गई ।


अमेरिका संविधान के निर्माता राष्ट्रपति का चुनाव दलगत राजनीति से ऊपर रखना चाहते थे । वे ऐसी प्रणाली रखना चाहते थे जिससे दम्भी व्यक्ति की इस पद तक पहुँच न हो सके । यहाँ निर्वाचन की प्रणाली बहुत सरल बनाई गई । संविधान में कहा गया कि प्रत्येक राज्य जिस प्रकार से भी वहाँ की व्यवस्थापिका सभा निश्चित करे , राष्ट्रपति के निर्वाचकों को नियुक्त करेगा । निर्वाचकों की संख्या प्रत्येक राज्य में उतनी होगी , जितने कि उस राज्य के कांग्रेस के दोनों सदनों में प्रतिनिधि हों ।


इस रीति के अन्तर्गत प्रत्येक राज्य के निर्वाचन गण राज्यों की राजधानियों में एकत्र होते थे और एक साथ सब उम्मीदवारों के लिए अपना मतदान करते थे । जिस अभ्यर्थी को सर्वाधिक मत प्राप्त होते थे वह राष्ट्रपति तथा उससे कम मत प्राप्त करने वाला अभ्यार्थी उपराष्ट्रपति निर्वाचित होता था । संविधान के 12 वें संशोधन के अनुसार निर्वाचकों का अपना मत राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के लिए पृथक - पृथक देना आवश्यक कर दिया गया । इस प्रणाली की कठिनाई देखते हुए यह अनुभव किया जाने लगा कि निर्वाचकों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होना चाहिए ।


19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में राष्ट्रपति की निर्वाचन पद्धति अप्रत्यक्ष से बदल कर प्रत्यक्ष हो गई । क्योंकि एक तो राज्यों के आपसी समझौते के फलस्वरूप राज्यों में निर्वाचकों का जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव किया जाने लगा और द्वितीय इन निर्वाचकों के उम्मीदवारों का नामांकन राजनीतिक दलों द्वारा होने लगा । आजकल संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लए दोनों राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों का चयन करने के लिये नामजदगी सम्मेलन करते हैं ।


इन सम्मेलनों में दोनों दल राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पद के लिये अपने अपने अभ्यर्थियों का चयन करते हैं और एक निर्वाचक कार्यक्रम बनाते हैं । 6 नवम्बर को साधारण मतदाताओं द्वारा निर्वाचकों का चुनाव किया जाता है । कोई भी साधारण व्यक्ति जो 21 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो , दण्डित अपराधी न हो पढ़ने लिखने की योग्यता रख्ता हो और जिसने अपना नाम मतदाता के रूप में रजिस्टर करा लिया हो , निर्वाचकों के चुनाव में मतदान का अधिकारी होता है । सन् 1920 में अमेरिकी संविधान में 19 वाँ संशोधन किया गया जिसके अनुसार लियों को भी मतदान का अधिकार दिया गया ।


साधारण मतदाताओं द्वारा निर्वाचित समस्त निर्वाचकों को निर्वाचक मण्डल कहते हैं । इन निर्वाचकों के चुनाव में जिस राजनीतिक दल को बहुमत प्राप्त होता है । उसी दल को उस राज्य के सभी निर्वाचकों के चुनने का अधिकार प्राप्त होता है। निर्वाचकगण जनवरी के प्रथम बुधवार को राज्यों की राजधानियों में एकत्रित होकर राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के उम्मीदवारों को अपना मतदान करते हैं जिसमें कम से कम एक उम्मीदवार किसी दूसरे राज्य का होना अनिवार्य है। मतों की गणना कांग्रेस के दोनों सदनों के सदस्यों की उपस्थिति में सीनेट के प्रधान के निरीक्षण में होती है ।


सर्वाधिक मत पाने वाला अभ्यर्थी विजयी घोषित कर दिया जाता है परन्तु यदि किसी भी प्रत्याशी की आवश्यक बहुमत प्राप्त न हो, तब प्रतिनिधि सभा को यह अधिकार होता है कि वह अधिक मत पाने वाले प्रथम तीन उम्मीदवारों में से किसी एक को राष्ट्रपति चुन लें । इस चुनाव में प्रतिनिधि सभा में प्रत्येक राज्य का एक ही वोट होता है । इसी प्रकार यदि राष्ट्रपति पद के लिये किसी अभ्यर्थी को स्पष्ट बहुमत न मिले तो |


सीनेट के यह अधिकार होता है कि वह अधिक मत प्राप्त करने वाले प्रथम उम्मीदवारों में से किसी एक को उपराष्ट्रपति चुन ले । इस चुनाव में प्रत्येक राज्य का एक वोट होता है । सारांशतः राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिये व्यवहार में दो पद्धतियाँ हैं , प्रथम वास्तविक या राजनीतिक और द्वितीय कानूनी । राजनैतिक दलों के विकास के कारण निर्वाचकों की नामजदगी राज्य सम्मेलन में तथा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की नामजदगी राष्ट्रपति सम्मेलन में होती है।

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