आनुपातिक प्रतिनिधित्व के गुण और दोष - Daily Preparation

आनुपातिक प्रतिनिधित्व के गुण और दोष | Pros and Cons of Proportional Representation

आनुपातिक प्रतिनिधित्व के गुण ( Properties of Proportional Representation )


आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के प्रमुख गुण निम्नलिखित परिलक्षित होते -

( 1 ) अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व –

इस पद्धति के अन्तर्गत अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व मिल जाता है जिससे प्रत्येक वर्ग को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर प्राप्त हो जाता है । 


( 2 ) अल्पसंख्यकों में सुरक्षा की भावना -

अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान कर यह पद्धति बहुसंख्यकों के अत्याचार को रोकती और अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करती है । 


( 3 ) लोकतंत्रवादी पद्धति -

लोकतंत्र जनता का , जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन होता है । आधुनिक समय में प्रत्यक्ष लोकतंत्र में प्रत्येक वर्ग के लोगों को राष्ट्रीय व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व प्रदान करने का एकमात्र साधन आनुपातिक प्रतिनिधित्व है । 


( 4 ) नागरिक चेतना का विकास -

इस पद्धति से समाज के सभी वर्गों को व्यवस्थापिका में अपना उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाता है जिससे उनमें नागरिक चेतना का विकास होता है और वे सार्वजनिक कार्यों के प्रति उदासीन नहीं रहते हैं । 


( 5 ) विधान - मंडल का उच्च स्तर-

निर्वाचकों को प्राप्त राजनीतिक प्रशिक्षण एवं जागृति, अन्त में, विधान - मंडल का स्तर उच्च कर देती है क्योंकि लोग उच्च स्तर के प्रतिनिधि चुनना प्रारम्भ कर देते हैं। 


( 6 ) मतदाता को अधिक स्वतंत्रता -

आनुपातिक प्रतिनिधित्व में मतदाता अपने आचरण तथा विकल्पों के प्रयोग में अपेक्षाकृत अधिक स्वतन्त्रता से कार्य करते हैं । शुल्ज ने ठीक ही कहा है कि एकल संक्रमणीय मतदान प्रणाली निर्वाचकों को अपनी पसन्द के उम्मीदवार चुनने में सबसे अधिक स्वतन्त्रता प्रदान करती है । 


( 7 ) भ्रष्टाचार का अन्त -

आनुपातिक प्रतिनिधित्व के पक्ष में यह तर्क यह दिया जाता है कि इसके अन्तर्गत राजनीतिक भ्रष्टाचार का बहुत अधिक सीमा तक अन्त हो जाता है । इस पद्धति को अपनाने तथा सामान्यतया विधान - मंडल में किसी एक राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हो पाता और इस कारण कोई भी राजनीतिक दल अपने समर्थकों को अनुचित रूप से लाभ नहीं पहुंचा सकता । 


( 8 ) न्याय पर आधारित व्यवस्था-

आनुपातिक प्रतिनिधित्व को न्याय पर आधारित पद्धति कहा जा सकता है क्योंकि इसके अन्तर्गत सभी वर्गों को उनकी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाता है । 


( 9 ) गैरीमैण्डरिंग आदि बुराइयों का अन्त -

आधुनिक निर्वाचन व्यवस्था . की एक बुराई है गैरीमैण्डरिंग जिसका तात्पर्य यह है कि सत्तारूढ़ दल द्वारा अपने लाभ की दृष्टि से निर्वाचन क्षेत्रों में मनमाने तरीके से अनुचित परिवर्तन कर दिये जाते हैं । गैरमेण्डरिंग को एक संघीय निर्वाचन क्षेत्रों में अपनाया जा सकता है लेकिन आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र होते हैं । अतः स्वाभाविक रूप से आनुपातिक प्रतिनिधित्व में गैरीमेण्डरिंग आदि बुराइयों का अन्त हो जाता है । 


आनुपातिक प्रतिनिधित्व के दोष ( Disadvantages of Proportional Representation )


सैद्धान्तिक दृष्टि से आनुपातिक प्रतिनिधित्व सभी प्रकार से श्रेष्ठ प्रतीत होती है , किन्तु व्यवहार में स्थिति ऐसी नहीं है । आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रमुख दोष 4 निम्नलिखित हैं -


( 1 ) अनेक राजनीतिक बलों और गुटों का जन्म

इस पद्धति के द्वारा प्रत्येक वर्ग या हित को पृथक् प्रतिनिधित्व का आश्वासन प्राप्त हो जाता है जिससे राजनीतिक दलों और गुटों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाती है । लास्की ने ठीक ही कहा है कि इसके अन्तर्गत अनेक राजनीतिक दलों और गुटों का जन्म हो जाता है । 


( 2 ) मिले - जुले मंत्रिमंडलों का निर्माण-

जब राजनीतिक दलों की संख्या बहुत अधिक हो जाती है तो निर्वाचन के बाद साधारणतया कोई एक राजनीतिक दल अकेले ही सरकार का निर्माण करने की स्थिति में नहीं होता । ऐसी परिस्थिति में अनेक दलों के मिले - जुले मंत्रिमण्डलों का निर्माण किया जाता है । फ्रांस , भारत देशों के अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि ये मंत्रिमंडल नितांत अस्थायी होते हैं जिसके प्रशासन की एकता एवं उत्तरदायित्व नष्ट हो जाता है । 


( 3 ) वर्गीय हितों को प्रोत्साहन

इस पद्धति द्वारा निर्वाचित व्यवस्थापिका राष्ट्रीय एकता का साधन न होकर क्षेत्रीय और वर्गीय हितों का संघर्ष - स्थल बन जाती है । सिजविक के शब्दों में , वर्गीय प्रतिनिधित्व आवश्यक रूप से दूषित वर्गीय व्यवस्थापन को प्रोत्साहित करता है । 


( 4 ) अत्यधिक जटिल पद्धति

आनुपातिक प्रतिनिधित्व की पद्धति अत्यन्त जटिल है और साधारण व्यक्ति इसे समझ नहीं सकता । मतों की गणना का कार्य तो और भी अधिक कठिन है और अनेक चार निश्चित संख्या में उम्मीदवार न चुने जा सकने के कारण पुनर्निवाचन की भी आवश्यकता होती है । 


( 5 ) राष्ट्रीय एकता के लिए घातक

आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में समाज अनेक छोटे - छोटे स्वार्थमूलक गुटों और भागों में विभाजित हो जाता है । इन गुटों के पास राष्ट्रीय स्तर का राजनीतिक एवं आर्थिक कार्यक्रम नहीं होता है । प्रोफेसर स्ट्रांग के शब्दों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व संकीर्ण विचारधारा को जन्म देते हैं जो अनिवार्य रूप से सामाजिक एकता के लिए हानिकारक हैं ।


( 6 ) शासन के कार्यों का मूल्यांकन नहीं-

आनुपातिक प्रतिनिधित्व की पद्धति अनेक छोटे - छोटे गुटों का जन्म देती है जिसके कारण मिले - जुले मंत्रिमंडल अपने आप में एक विडम्बना होते हैं । इस प्रकार के मंत्रिमण्डल अपनी असफलता का उत्तरदायित्व एक - दूसरे पर डालते हैं।


( 7 ) उपचुनावों के लिए व्यवस्था नहीं

इस पद्धति का कारण भी दोषपूर्ण है कि इसमें उपचुनावों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है । उपचुनाव लोकमत का दर्पण समझे जाते हैं । डॉ . फाइनर के अनुसार , उपचुनावों से यह ज्ञात होता है कि हवा किस ओर बह रही है किन्तु इस प्रकार के उपचुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति में सम्भव नहीं । 


( 8 ) अच्छे कानूनों का निर्माण सम्भव नहीं

आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अपनाने के परिणामस्वरूप व्यवस्थापका विभिन्न प्रकार के परस्पर विरोधी • विचारों का अखाड़ा बन जाती है । इसका प्रभाव विधि - निर्माण पर भी पड़ता है और अत्यन्त निम्न स्तर की विधियों का निर्माण होता है ।


( 9 ) निर्वाचकों और प्रतिनिधियों में सम्पर्क का अभाव -

आनुपातिक प्रतिनिधित्व की सभी योजनाओं के अन्तर्गत बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र आवश्यक होते हैं और इन बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों का परिणाम यह होता है कि निर्वाचकों और उनके प्रतिनिधियों में प्रत्यक्ष और निजी सम्पर्क नहीं रहता । प्रतिनिधि मतदाताओं की अपेक्षा अपने दल के प्रति ही उत्तरदायित्व का अनुभव करते हैं।

इसे भी पढ़ें -

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top