ब्रिटिश संसद की विधि-निर्माण प्रक्रिया | Law making process of the British Parliament

ब्रिटिश संसद की विधि-निर्माण प्रक्रिया 

ब्रिटेन की विधि-निर्माण-प्रक्रिया को विधेयकों के अनुरूप, तीन भागों में रखा जा सकता है- 


( क ) सार्वजनिक विधेयक ( वित्त विधेयकों को छोड़कर ) से सम्बन्धित विधि निर्माण प्रक्रिया | 

( ख ) निजी या व्यक्तिगत विधेयकों से सम्बन्धित विधि - निर्माण प्रक्रिया ।

( ग ) वित्त-विधेयकों से सम्बन्धित विधि - निर्माण प्रक्रिया।


( क ) सार्वजनिक विधेयकों ( वित्त विधेयकों को छोड़कर ) से सम्बन्धित विधि निर्माण प्रक्रिया-

( i ) प्रस्तुतीकरण एवं प्रथम वाचन, 

( ii ) द्वितीय वाचन, 

( iii ) समिति स्तर 

( iv ) प्रतिवेदन स्तर , 

( v ) तृतीय वाचन , 

( i ) विधेयक का द्वितीय सदन में आना एवं 

( vii ) काउन की स्वीकृति । 


( i ) प्रस्तुतीकरण एवं प्रथम वाचन

सिद्धान्तः ये दोनों बातें भिन्न - भिन्न हैं , किन्तु ब्रिटेन में विधेयक का प्रस्तुतीकरण तथा प्रथम वाचन एक साथ ही होता है । सैद्धान्तिक रूप में कोई भी सार्वजनिक विधेयक किसी भी संसद - सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है , परन्तु व्यवहार में सभी महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक विधेयक सरकार की ओर से ही किसी न किसी मन्त्री द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं । वित्त विधेयक अनिवार्यतः वित्त मन्त्री द्वारा लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जाता है । अन्य विधेयक संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जा सकते हैं । 


( ii ) द्वितीय वाचन

प्रथम वाचन के पश्चात जब विधेयक छप जाता है , तब वह सूची ( Calender ) पर आ जात आहै । विधेयक के दूसरे वाचन के लिए एक तारीख निश्चित कर दी जाती है । द्वितीय वाचन के समय विधेयक पर बहस होती है । विधेयक के शीर्षक, उद्देश्य, प्रयोजन और सिद्धान्तों आदि पर डट कर वाद-विवाद किया जाता है । इस अवस्था में कोई संशोधन नहीं हो सकता । सदन सम्पूर्ण विधेयक को स्वीकृत या अस्वीकृत कर देता है । गैर - सरकारी सदस्यों द्वारा प्रस्तुत विधेयक प्रायः द्वितीय वाचन में समाप्त हो जाते हैं । 


( iii ) समिति स्तर

द्वितीय वाचन के पश्चात् विधेयक किसी समिति सुपुर्द किया जाता है । यदि वह वित्त विधेयक है तो सम्पूर्ण सदन की समिति में भेजा जाता है अन्यथा शेष सभी विधेयकों को प्रायः स्थायी समितियों में से किसी एक में अध्यक्ष द्वारा भेज दिया जाता है । कभी - कभी विधेयक को किसी विशिष्ट समिति को भी दे दिया जाता है और वहाँ से लौटने पर या तो सम्पूर्ण सदन की समिति में या किसी स्थायी समिति में भेजा जाता है ।


( iv ) प्रतिवेदन स्तर

समिति स्तर के पश्चात् प्रतिवेदन स्तर आता है । सम्पूर्ण सदन की समिति के पश्चात् यह स्तर केवल औपचारिक रह जाता है लेकिन अन्य समितियों में विचारोपरान्त इस स्तर पर पर्याप्त वाद - विवाद होता है । ब्रिटेन में समितियाँ प्रत्येक विधेयक को अपने प्रतिवेदन के साथ सदन को लौटाती हैं। यह पूर्णतः सदन के अधिकार की बात है कि वह समितियों केप्रतिवेदन में दिए गए सुझावों को स्वीकार करे या न करें । 


( v ) तृतीय वाचन

विधेयक का सदन में तृतीय वाचन अन्तिम स्तर है । इस पर भी वाद - विवाद होता हैऔर विधेयक के सिद्धान्तों पर विचार किया जाता है । इसका उद्देश्य यह होता है कि संशोधित विधेयक को एक बार अन्तिम रूप से फिर देख लिया जाए, उसकी परीक्षा कर ली जाए और तभी उसको अन्तिम स्वीकृति प्रदान की जाये ।


इस स्तर पर विधेयक के स्वरूप पर तथा प्रतिशब्द पर विचार नहीं होता । केवल विधेयक के सिद्धान्तों और उसकी लाभ - हानि पर विचार किया जाता है । अन्त में , इस आशय का प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है कि विधेयक का तृतीय वाचन कर लिया गया है । इसका आशय होता है कि विधेयक सदन में अन्तिम रूप से स्वीकृत एवं पारित हो गया है । 


( vi ) विधेयक का द्वितीय सदन में आना

एक सदन द्वारा पारित होने पर विधेयक दूसरे सदन में भेज दिया जाता है । अधिकांश सरकारी और महत्त्वपूर्ण विधेयक पहले लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जाते हैं । अतः वहाँ विचारोपरान्त पुनः लॉर्ड - सभा में भेज दिए जाते हैं । सदन की लिपिक विधेयक को दूसरे सदन में ले जाता है । द्वितीय सदन में भी प्रथम वाचन , द्वितीय वाचन , समिति स्तर , प्रतिवेदन स्तर तथा तृतीय वाचन दोहराए जाते हैं ।


अन्तर केवल इतना है कि लॉर्ड - सभा में समिति स्तर पर स्थायी समितियों और विशिष्ट समितियों का प्रयोग नहीं किया जाता , वरन् सम्पूर्ण सदन समिति का प्रयोग होता है । यदि लॉर्ड - सभा विधेयक को स्वीकार कर लेती है तो वह हस्ताक्षर के लिए रानी ( क्राउन ) के पास भेज दिया जाता है , यदि वह विधेयक से असहमत होती है और उसमें संशोधन कर देती है तो विधेयक पुनः लोकसभा में लौट आता है । 


( vii ) क्राउन की स्वीकृति

क्राउन की स्वीकृति - विधेयक के जीवन का अन्तिम स्तर राजकीय स्वीकृति ( Royal Assent ) का होना है । यह स्तर केवल औपचारिक है । विधेयक इस अन्तिम अवस्था से रानी की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किए जाते हैं और अध्यक्ष की उपस्थिति में उनके शीर्षक लॉर्ड - सभा में पढ़े जाते हैं । रानी के प्रतिनिधि द्वारा घोषणा की जाती है कि ' रानी ऐसा चाहती है । '


( ग ) वित्त विधेयकों से सम्बन्धित विधि - निर्माण प्रक्रिया

वित्त विधेयक वे विधेयक होते हैं जिनका सम्बन्ध करारोपण, परिवर्तन या रद्द करने से और सार्वजनिक कोषों के नियोजन से होता है । वित्त - विधेयकों की एक विशिष्ट स्थिति होती है और ये अनिवार्यतः लोकसभा में प्रस्तावित किये जाते हैं ।


लोकसभा वित्त विधेयकों को संशोधित या अस्वीकृत कर सकती है , किंतु जब अनुदान के लिए मांग की जाए तब यह प्रार्थिक - राशि को कम या अस्वीकार तो कर सकती है , लेकिन उसे बढ़ा नहीं सकती । वित्त - विधेयकों पर लॉर्ड - सभा का कोई वश नहीं होता । "


वित्त - विधेयकों की विधि - निर्माण सम्बन्धी प्रक्रिया निम्न प्रकार है -

( क ) सभी वित्त विधेयक, राजा या रानी की सिफारिश पर सरकार की ओर से साधारणतः वित्त - मन्त्री के द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते हैं । 


( ख ) द्वितीय वाचन में सिद्धान्तों के स्वीकार होने के उपरान्त वित्त - विधेयक सम्पूर्ण सदन की समिति में विचारार्थ प्रस्तुत होते हैं । सम्पूर्ण सदन की समिति में वित्त - मन्त्रि के सम्बन्ध में भाषण देता है और विधेयक पर वाद - विवाद होता है । 


( ग ) वित्त - विधेयक भी विधि - निर्माण प्रक्रिया की उन समस्त सीढ़ियों को पार करता है , जो सार्वजनिक विधेयकों के लिए वर्णित की गई है । 


( घ ) लोकसभा के पारित होने के बाद वित्त-विधेयक लॉर्ड-सभा में भेजे जाते हैं जो उन्हें पारित करने में अधिक से अधिक एक माह की देर कर सकती है । इस अवधि में लॉर्ड - सभा यदि विधेयक को पारित नहीं करती है तो भी विधेयक सम्राट् या साम्राज्ञी के पास भेज दिया जाता है और उनके हस्ताक्षर होने पर विधेयक अधिनियम का रूप धारण कर लेता है।

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