कामन्स सभा के अध्यक्ष के कार्य | Functions of the Speaker of the House of Commons

कामन्स सभा के अध्यक्ष के कार्य | Functions of the Speaker of the House of Commons in Hindi

कामन्स सभा के अध्यक्ष के कार्य: वास्तव में इंग्लैंड का अध्यक्ष पूर्ण, निष्पक्ष तथा दलबंदी से अलग रहता है । तो वह बहुमत दल का सदस्य होता है परंतु पदारुढ़ होते ही के समय वह अपने चुनाव दल से पूर्णतया सम्बंध विच्छेद कर लेता है । वह किसी राजनीतिक क्रिया कलाप में भाग नहीं लेता है।


वह उन सभी कार्यों से अलग रहता है जिनसे कुछ भी पक्षपात या दलबंदी की बू आती है अपनी निर्दलीयता तथा निष्पक्षता को सुरक्षित रखने के लिए अध्यक्ष वाद - विवाद में भाग में नहीं लेता है वह मृतदान भी नहीं करता । है । जब किसी प्रस्ताव पर बराबर मत पड़ते हैं तो वह अपने निर्णायक मत का यथासम्भव इस प्रकार प्रयोग करता है कि उससे कोई दलीय सहानुभूति प्रगट न हो । 


स्पीकर के अधिकार तथा कार्य ( Speaker's powers and functions )


लोकसभा के अध्यक्ष को काफी अधिकार मिले हैं। वह तमाम क्रिया - कलापों का सम्पादन करता है, संक्षेप में अध्यक्ष के अधिकारों का विवेचन निम्नलिखित रीति से किया जा सकता है -


( 1 ) सदन की बैठकों की अध्यक्षता करना

स्पीकर लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है । बैठक की सभी कार्यवाहियों का वही विधिपूर्वक संचालन करता है । जब लोकसभा पूर्ण सभा की समिति के रूप में बैठती है तो वह उसकी अध्यक्षता नहीं करता है अन्यथा अन्य सभी अवसरों पर वह सदन की बैठकों का संचालन करता है । अध्यक्ष की मेज पर एक रजत दण्ड , जो सम्राट द्वारा प्राप्त अधिकारों का सूचक एवं अध्यक्ष की शक्ति का प्रतीक है , रक्खा रहता है । उस पर राजमुकुट का चिह्न अंकित रहता है । 


( 2 ) लोक सभा का प्रवक्ता

वह लोकसभा का प्रमुख प्रवक्ता होता है । इस रूप में वह 

( क ) सम्राट से संसद के विशेषाधिकारियों की माँग करता है, 

( ख ) सदन की ओर से कृतज्ञता अथवा असंतोष के संदेश सम्राट के पास भेजता है तथा 

( ग ) वित्त विधेयक लार्ड सदन में ले जाता है । 

( घ ) सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करता है । 


( 3 ) सदस्यों को भाषण करने की अनुमति देना

अध्यक्ष के अपने पद पर आसन ग्रहण किये बिना सदन कोई कार्यवाही नहीं कर सकता है । वही प्रश्न को प्रस्तावित तथा प्रस्तुत करने की अनुमति देता है । वाद - विवाद के समय वह सदस्यों को भाषण करने की आज्ञा देता है । उसकी अनुमति के बिना कोई सदस्य सदन में बोल नहीं सकता । यदि वह बोलना चाहता है तो अध्यक्ष ही निर्णय करता है कि उसे अनुमति दी जाय या नही ।


अल्पसंख्यकों को अपने विचार प्रकट करने का अवसर देने का प्रयास किया जाता है तथा यह प्रयत्न किया जाता है कि कोई सदस्य बोलने से रह न जाय और सभी को अपने विचार यह प्रयत्न किया जाता है कि कोई सदस्य बोलने से रह न जाय और सभी को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर मिल जाय सदस्य सदन में बोलते समय अध्यक्ष को ही सम्बोधित करते हैं । 


( 4 ) सदन में अनुशासन एवं व्यवस्था स्थापित करना

अध्यक्ष का यह कर्तव्य है कि वह सभा के वाद - विवादों में शांति तथा व्यवस्था की स्थापना करे । यदि कोई सदस्य वाद - विवाद के विषय से अलग हट कर व्यर्थ सदन का समय नष्ट कर रहा है । अथवा बार - बार एक ही विषय को दोहरा रहा है तो अध्यक्ष उसे रोक सकता है ।


सदस्य द्वारा कहे गये अनुचित शब्दों को वह वापस लेने को कह सकता है । अनुशासन भंग करने पर वह किसी सदस्य को निश्चित दिनों तक सदन में आने से रोक सकता है । वह उसका नाम निर्देशित कर सकता है , भर्त्सना दे सकता है । बैठक से चले जाने की आज्ञा दे सकता है और आज्ञा न मानने पर उसे बल प्रयोग द्वारा सदन से निकलवा सकता है । 


( 5 ) नियम सम्बंधी आपत्तियों का निर्णय करना

किसी सदस्य द्वारा प्रयुक्त भाषा अथवा तथ्य के विरुद्ध किसी दूसरे सदस्य द्वारा की गयी आपत्ति पर भी अध्यक्ष ही निर्णय देता है । इसी तरह वह कार्यवाही की नियम सम्बंधी आपत्तियों का निर्णय करता है । और उसके निर्णय पर कोई विचार - विमर्श अथवा वाद - विवाद नहीं सकता है । उसका निर्णय अंतिम निर्णय समझा जाता है ।


( 6 ) वाद - विवाद समापन तथा निर्णायक मत देना

अध्यक्ष ही यह निर्णय करता है कि सदन में पूछे गये किन प्रश्नों का उत्तर दिया जायगा किन प्रस्तावों को स्वीकार किया जायगा और विधेयक में प्रस्तावित संशोधनों में किन पर विचार किया जायगा आदि । किसी भी विशेयक पर वाद - विवाद को समाप्त करने के लिए वह मतदान करा सकता है ।


तदान में अधिक मतों द्वारा समर्थित स्ताव आदि को पारित होने की घोषणा करता है । यदि दोनों पक्षों के मत बराबर होते है तो वह अपना ना निर्णायक मत देकर प्रस्ताव पारित कर देता है । लोकसभा का निर्वाचित सदस्य होने के नाते वह भी एक मत देने का अधिकारी है । यद्यपि वह इस अधिकार का प्रयोग तभी करता है जब दोनों के मत बराबर हो परंतु निर्णायक मत देने में यह सुनिश्चित परम्पराओं का पालन करता है । 



( 7 ) लोक सभा के प्रतिनिधित्व का अधिकार

वह सदन के नाम पर सम्राट से अधिकार की याचना करता है । लोकसभा के लिये भेजे गए सभी आवेदन पत्र उसी के पास आते हैं । प्रतिनिधि होने के नाते लार्ड - सभा द्वारा पारित विधेयकों तथा लोक सभा द्वारा पारित विधेयक में लार्ड - सभा द्वारा प्रस्तावित संशोधनों की वही जाँच करता है तथा सदन के आदेशों को लागू करने के लिए वह समावेश तथा वारंट जारी करता है । सदन की दैनिक कार्यवाही तथा अन्य संसदीय प्रपत्रों को प्रकाशित कराने का भी प्रबंध करता है । 



( 8 ) सीमा आयोग तथा अन्य सम्मेलनों की अध्यक्षता

सन् 1945 ई . से निर्वाचन क्षेत्रों का बराबर - बराबर भागों में विभाजन करने के लिए जो सीमा आयोग बनाया गया , स्पीकर उस आयोग की भी अध्यक्षता करता है । ये आयोग निर्वाचन क्षेत्रों में परिवर्तन संशोधन करते हैं । वह सदन के बड़े सम्मेलनों के सदस्यों की भी नियुक्ति करता है । वह एक अध्यक्ष मण्डल मनोनीत करता है जिसमे सदस्य होते हैं और उनमें से स्थायी समितियों के अध्यक्षों की भी नियुक्ति करता है ।


( 9 ) सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करना

वाद - विवाद की स्थिति में अल्प संख्यक लोगों का संरक्षण करने का अधिकार उसी को है । ग्लैडस्टन के शब्द में उनका अर्थ सदन के सदस्यों की रक्षा करता है । क्राउन ने अपना विचार इस तरह प्रकट किया है— “ अध्यक्ष का यह कार्य है कि वह सदस्यों के अधिकारों की रक्षा केवल सम्राट तथा लार्ड्स से करे अपितु सदन के सदस्यों से भी करे ताकि संसद का आधार एक ऐसे स्थान के रूप में जिसमें चुन हुए प्रतिनिधि अपनी समझ के अनुसार अच्छा या बुरा कह सकते हैं , बनाये रक्खा जा सके । ” 


( 10 ) सम्मानजनक पदों को सुशोभित करना

अध्यक्ष अनेक सम्मानजनक पदों को अलंकृत करता है । पितिग्रम ट्रस्ट , राष्ट्रीय कक्ष तथा ब्रिटिश म्युजियम , इन तीनों संस्थाओं का वह अध्यक्ष होने के नाते ट्रस्टी होता है । जेनिग्स ने लिखा है “ परम्परा और प्रयास ने मिलकर इस पदाधिकारी को वह प्रतिष्ठा एवं सत्ता प्रदान की है जो अद्वितीय हैं ।. .... उसकी प्रतिष्ठा उसकी सत्ता से अधिक है । "


ब्रायस ने तो यहाँ तक कह डाला है कि " कुछ सीमा तक लोक सभा के अविरल अस्तित्व का श्रेय उसी को है । लोक सभा उस समय तक चल सकेगी जब तक कि उसकी प्रक्रिया , और व्यवस्था उन कार्यों को सम्पन्न कर सकने में समर्थ है जो इसे करने हैं । लोक सभा की प्रक्रिया को नवीन दशाओं के अनुकूल बनाना अध्यक्ष का ही कार्य है । " 


( 11 ) विधेयक पर निर्णय

यदि किसी विधेयक के बारे में यह विवाद | पैदा हो जाय कि वह वित्तीय विधेयक है अथवा नहीं , तो इसका निर्णय स्पीकर ही करता है और यह अंतिम निर्णय होता है वही यह निर्णय करता है कि किसी सार्वजनिक विधेयक पर तुरंत वाद - विवाद हो अथवा नहीं । सदन के विशेषाधिकारों का अतिक्रमण होने पर उसका निर्णय अंतिम माना जाता है । 

( 12 ) सदन की मर्यादा का रक्षक

स्पीकर ही सदन की मर्यादा की रक्षा करता है । वह सरकार को सदन की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करने देता ओर सरकार जब कभी अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करती है तो उसे वह रोकता है ।

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