लोकतंत्र की परिभाषा कीजिए और लोकतंत्र के गुण - दोष का वर्णन कीजिए | Definition of democracy and its merits and demerits
आधुनिक युग प्रजातन्त्र का युग है। 1949 में युनेस्कों ने प्रजातन्त्र से सम्बन्धित आदर्शों के बारे में जो खोज की उससे वह इसी परिणाम पर पहुंचा कि अधिकतर देशों के विद्वान प्रजातन्त्र को उचित और आदर्श राजनीति तथा सामाजिक संगठन मानते हैं। फिर भी गत कुछ वर्षों से विपरीत प्रवृत्तियों का तेजी से उदय हुआ है । कई देशों में सैनिक तानाशाही स्थापित हुई और दक्षिण-पूर्वी, मध्य-पूर्वी एवं लेटिन अमेरिकी देशों के नव-स्वतन्त्रता प्राप्त देशों में प्रजातन्त्र के नाम पर इसके विकृत रूप को अपनाया जा रहा है।
निर्देशित प्रजातन्त्र ' तथा ' सीमित प्रजातन्त्र के नाम पर एक व्यक्ति के शासन तथा अधिनायकवाद की स्थापना की जा रही है । प्रजातन्त्र के भविष्य के लिए यह अस्वस्थकर स्थिति है । प्रजातन्त्र की परिभाषा के सम्बन्ध में विद्वानों में कोई सामान्य मतैक्य नहीं हो सका है । वास्तव में प्रजातन्त्र का नाम इतना पवित्र बन गया है कि कोई भी अपने आपको प्रजातन्त्र विरोधी कहने का साहस नहीं करता । यदि प्रजातन्त्र की कुछ लोकप्रिय परिभाषाओं पर विचार करें तो अब्राहम लिंकन ने प्रजातन्त्र को सरकार का वह रूप माना है ' जो जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन ' होता है ।
सीले के कथनानुसार, " प्रजातन्त्र सरकार का वह रूप है जिसमें प्रत्येक का योगदान होता है। " ब्राइस के मतानुसार , " हेरोडोटस के समय से ही जनतन्त्र का अर्थ उस शासन पद्धति से लिया जाता है जिसमें राज्य की प्रशासनिक शक्ति किसी विशेष वर्ग या वर्गों के हाथ में न होकर सम्पूर्ण समाज के हाथ में होती है । " प्रजातन्त्रात्मक शासन व्यवस्था में प्रशासन का आधार जनता की स्वीकृति होती है । इसमें शासक वर्ग सारे देश की जनता का प्रतिनिधि होता है । किन्तु ' जनता ' शब्द का अर्थ निश्चित और स्पष्ट नहीं है ।
ब्राइस ने योग्य नागरिकों के बहुमत की प्रबल इच्छा को प्रजातन्त्र का आधार माना है । प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को उसका मत प्रकट करने की स्वतन्त्रता होती है । इसका विचार नहीं रहता कि उसके मत को मान्यता मिलेगी अथवा नहीं । प्रजातन्त्र में बहुमत को महत्वपूर्ण मानने के दो कारण है । प्रथम तो यह कि अल्पसंख्यकों की अपेक्षा उनका मत अधिक सही होने की सम्भावना रहती है ।
लोकतंत्र के गुण व दोष ( Merits and Demerits of democracy )
लोकतंत्र के गुण
( 1 ) उच्च आदर्शों पर आधारित
प्रजातंत्र का सर्वप्रथम गुण यह है कि यह स्वतंत्रता समानता तथा भ्रातृत्व के उच्च आदर्शों पर आधारित है । लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक समान रूप से स्वतंत्रता का उपभोग करता है , सबके साथ समानता का व्यवहार किया जाता है , हर एक के व्यक्तित्व की गरिमा को स्वीकार किया जाता है । प्रजातंत्र में प्रत्येक एक के बराबर माना जाता है , कोई भी एक से अधिक के बराबर नहीं माना जाता । " प्रत्येक व्यक्ति समाज का आवश्यक एवं सम्मानित सदस्य माना जाता है ।
( 2 ) जनमत पर आधारित
प्रजातंत्र जनमत पर आधारित है । इसमें सरकार उसी दल की बनती है जिसे जनता पसन्द करती है । शासन में प्रत्येक की एक बराबर आवाज रहती है । जैसा लावेल ने कहा है : " पूर्ण प्रजातन्त्र में किसी को भी यह शिकायत नहीं हो सकती कि उसे सुने जाने का अवसर नहीं मिला । "
( 3 ) लोकप्रिय एवं स्थायी सरकार
प्रजातंत्र में शासन लोकप्रिय एवं स्थायी रहता है । वह जनमत के अनुकूल बनने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहता है । अतः प्रजातन्त्रात्मक शासन - पद्धति में क्रांति की सम्भावना कम रहती है ।
( 4 ) राजनीतिक प्रशिक्षण का साधन
प्रजातंत्र राजनीतिक प्रशिक्षण का उत्तम साधन है। इसमें व्यक्तियों को आज्ञापालन , कर्तव्यपरायणता , देश - प्रेम, आत्मविश्वास, उदारता आदि गुणों का पाठ पढ़ाया जाता है। इसके अन्तर्गत नागरिकों को शासन में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है, अतः राजनीतिक मामलों की उनकी जानकारी बढ़ती है । सी ० डी ० बर्न्स के शब्दों में, “ सभी शासन शिक्षा की एक पद्धति है, परन्तु सर्वोत्तम शिक्षा आत्म - शिक्षा है, इसलिए सर्वोत्तम शासन स्वशासन अर्थात् प्रजातंत्र है। ' प्रजातंत्र सार्वजनिक शिक्षण का एक महान प्रयोग है ।
( 5 ) व्यक्तियों का चरित्र निर्माण
प्रजातन्त्र प्रणाली नागरिकों के चरित्र का निर्माण करती है । यह राजनीतिक कार्यों में उनकी , रुचि बढ़ाकर उनमें देशप्रेम की भावना को सबल बनाती है । यह नागरिकों के चरित्र को निखारती है और उनमें कानून के प्रति श्रद्धा , आत्म - अनुशासन व्यवस्था का पालन आदि गुणों का संचार करती है ।
( 6 ) देश - प्रेम की भावना का विकास
प्रजातंत्र के अन्तर्गत देश - प्रेम की भावना का विकास होता है । चूँकि जनता स्वयं देश की सर्वेसर्वा होती है, इसलिए यह राष्ट्र प्रेम से ओत - प्रोत रहती हैं । यदि देश के प्रशासन में जनता की आवाज रहती है , तो वह उसे चाहने लगती है । लेवेलिये का यह कथन पूर्णतः सही भले ही न हो, किन्तु उसमें सत्य का अंश अवश्य है कि ' फ्रांसीसी लोगों के मन में फ्रांस के प्रति सच्चा प्रेम उस समय जागा, जब महान क्रान्ति के बाद उन्हें देश के शासन में लेने का अवसर प्रदान किया गया । "
( 7 ) सार्वजनिक कल्याण
प्रजातंत्र शासन ' जनता के लिए ' अर्थात् जनता के हित में होता है । प्रजातंत्र का प्राथमिक लक्ष्य सार्वजनिक कल्याण है । इसमें व्यक्ति अथवा वर्ग - विशेष के हित को नहीं , अपितु सम्पूर्ण समाज के हित को ध्यान में रखा जाता है ।
( 8 ) सामाजिक एकता की अनुभूति
प्रजातंत्र सामाजिक एकता का सर्वोत्तम साधन है । लोकतंत्र ऐसी सामाजिक व्यवस्था है कि जिसमें व्यक्ति तथा समाज का सावयवी सम्बन्ध रहता है । इसके अनुसार व्यक्ति समाज के उसी तरह अभिन्न अंग है जिस प्रकार अवयव शरीर के व्यक्तियों में अन्योन्याश्रितता का सम्बन्ध है ।
लोकतंत्र के दोष
( 1 ) अवयस्क पद्धति
प्रजातन्त्र पर अवयस्क होने का भी आरोप लगाया जाता है । उसमें बिना समझे हुए राजनीतिक क्षेत्र में व्यावहारिक प्रयोग कर डाले जाते हैं । शासनतन्त्र में निरन्तर परिवर्तन होते रहने के कारण प्रायः अनुभवहीनों की शासन व्यवस्था स्थापित हो जाती है ।
( 2 ) बहुमत का अत्याचार
प्रजातन्त्र बहुमत का शासन है । कभी - कभी बहुमत मनमानी करने लगता हैं और अल्पसंख्यकों का गला घोंटने लगता है । कुछ विद्वान् उसे ' क्रूर बहुमत की संज्ञा देते हैं कभी - कभी वह सैनिक रीति से कार्य करने लगता है , व्यक्ति की स्वतन्त्रता जाती रहती है । लेकी और मेन के विचारानुसार प्रजातन्त्र का गला घोंट दिया जाता है। 51 प्रतिशत लोग 49 प्रतिशत की स्वतन्त्रता का अपहरण कर शासन करते हैं। इस प्रकार प्रजातन्त्र स्वतन्त्रता का शत्रु बन जाता ।
( 3 ) जन बहुमत का शासन नहीं
कुछ आलोचकों का कहना है कि प्रजातन्त्र में जनता के बहुमत का शासन नहीं रहता । इसका कारण यह है कि प्रतिनिधि जनता के बहुमत से नहीं , बल्कि मतदाताओं के बहुमत से चुने जाते हैं जो सम्पूर्ण जनसंख्या की तुलना में बहुत कम रहता है । इसके अतिरिक्त प्रायः सम्पूर्ण जनता को मताधिकार नहीं दिया जाता । आज भी स्विट्जरलैण्ड में सभी वर्ग इस सुविधा से वंचित हैं ।
( 4 ) वर्ग - विरोध को प्रोत्साहन
लोकतन्त्र में वर्ग - विरोध एवं संघर्ष को प्रोत्साहन मिलता है । आधुनिक प्रजातन्त्र पूँजीवादी है । इसमें धनिक वर्ग के हाथ में शासन सत्ता चली जाती है । धन के बल पर धनिक वर्ग मतदाताओं , व्यवस्थापकों एवं मन्त्रियों को खरीद देता है और अपने हित के लिए मनचाहा कानून प्रजातन्त्र धनिकों का शासन बन जाता है । यह निहित स्वार्थों का धन की शक्ति प्रजातन्त्र को एकदम दूषित कर देती है । धनिक वर्ग और निर्धन वर्ग के बीच में बहुत बड़ी दीवार खड़ी हो जाती है । समाज में संघर्ष , फूट और वैमनस्य फैल जाता है । बनवाता है । गढ़ बन जाता है ।
( 5 ) सभ्यता का विरोध
लोकतन्त्र को सभ्यता , संस्कृति तथा विज्ञान का शत्रु कहा जाता है । सामान्य रूढ़िवादी होती है जो प्रगतिशील कदमों का सदा विरोध करती है । लेकी के अनुसार " प्रजातन्त्र बौद्धिक विकास तथा वैज्ञानिक सत्य की प्रगति के प्रतिकूल है । सर हेनरी मेन भी कहा है कि “प्रजातन्त्र बौद्धिक उन्नति , साहित्य विज्ञान तथा कला के विकास के अनुपयुक्त है । उन्हीं के शब्दों में “ यह निश्चित मालूम पड़ता है ।
( 6 ) अनुत्तरदायी शासन
प्रजातन्त्र में उत्तरदायी केन्द्र बिन्दु को ढूंढ़ निकालना कठिन है यदि कोई प्रयोग असफल हो जाता है तो उसके लिए किसी विशेष को उत्तरदायी ठहराना कठिन है फैगेट के शब्दों में, " प्रजातन्त्र शासन के अन्तर्गत शासन सत्ता एक अव्यवस्थित भीड़ के हाथ में रहती है । अतः यदि किसी का शिकायत करनी हो या विरोध करना हो तो किससे करे , यह कठिन होता है । " इसके अलावा यह भी देखा जाता है कि जनता के लिए प्रतिनिधि एक निश्चित अवधि के लिए एक बार चुन लिये जाने के बाद अपने उत्तरदायित्व को भूल जाते हैं ।
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