शक्ति का अर्थ ( Shakti Ka Arth )
शक्ति का अर्थ : प्राचीनकाल से ही विद्वान राजनीति के अध्ययन के अन्तर्गत किसी न किसी रूप में शक्ति की विवेचना तथा उसका महत्व स्वीकार करते आ रहे हैं, परन्तु द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् तो इसने राजनीतिक अध्ययन एवं शोध के क्षेत्र में विशिष्ट और केन्द्रीय स्थिति प्राप्त कर ली है । समाजशास्त्रीय दृष्टि से राजनीति के बारे में अध्ययन करने वाले विद्वानों के अनुसार तो किसी भी राजनीतिक व्यवस्था को समझने और उसकी विवेचना के लिए शक्ति के अध्ययन को केन्द्रबिन्दु बनाना न केवल आवश्यक अपितु अनिवार्य भी है ।बैकर का मानना है कि राजनीति को शक्ति से अलग नहीं किया जा सकता है । बटेण्ड रसेल ने शक्ति को राजनीतिशास्त्र के अध्ययन की मूलभूत अवधारणा की संज्ञा दी है । केटलिन ने राजनीतिशास्त्र को शक्ति का विज्ञान कहा है । मेकाइवर , चार्ल्स मेरियम , लासवेल , रार्बट डहल तथा फ्रेडरिक वारकिन्न आदि ने भी शक्ति को ही राजनीतिशास्त्र के अध्ययन का केन्द्रीय विषय माना है ।
प्रश्न उठता है कि शक्ति क्या है ? विद्वानों की परिभाषाओं तथा इसकी प्रकृति की दिवेचना से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शक्ति दूसरों को प्रभावित , नियन्त्रित और निर्देशित करने की क्षमता एवं योग्यता है । राज्य अपनी शक्ति के जरिए अन्य राज्यों को प्रभावित और नियन्त्रित तथा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावशाली भूमिका निभाने का प्रयास करते हैं । राजनीति विज्ञान की आधुनिक अवधारणाओं में शक्ति का विशेष स्थान है , किन्तु शक्ति की सर्वश्रेष्ठ परिभाषा देना कठिन है ।
शक्ति की परिभाषा ( Shakti Ki Paribhasha )
( 1 ) मैक्स वेबर– “ शक्ति एक ऐसी सम्भावना है जिसमें एक कर्ता सामाजिक सम्बन्ध में प्रतिरोध के होते हुए भी अपने संकल्प को पूरा करने की स्थिति में होता है । "( 2 ) मैकाइवर- " व्यक्तियों या वस्तुओं के व्यवहार को केन्द्रित , नियमित और निर्देशित करने की क्षमताओं को शक्ति कहते हैं । "
( 3 ) लासबैल एवं कैपलान - “ शक्ति प्रभाव का प्रयोग करने की विशेष स्थिति है । यह वांछित नीतियों का न पालन करने पर वास्तविक या धमकीपूर्ण घोर हानियों की सहायता से दूसरों पर नीतियाँ लागू करने की प्रक्रिया है । "
( 4 ) मारगेन्यो - " शक्ति से हमारा अभिप्राय एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के मस्तिष्क एवं कार्यों पर नियन्त्रण है । "
इस प्रकार शक्ति एक महत्वपूर्ण तत्व है । राजनीति विज्ञान में राज्य व्यवस्था को प्रभावित करने वाले एवं मनुष्य के सार्वजनिक व्यवहार का निर्माण करने वाले तथ्यों में शक्ति का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है ।
( 5 ) बैंकठ– “ राजनीति को शक्ति से पृथक् नहीं किया जा सकता है । "
( 6 ) कैटलिन– “ राजनीति , शक्ति का विज्ञान है । "
शक्ति के प्रकार ( Shakti ke Prakar )
( 1 ) प्रत्यक्ष शक्ति और अप्रत्यक्ष शक्ति( 2 ) प्रकट शक्ति और अप्रकट शक्ति
( 3 ) परम्परागत शक्ति और संवैधानिक शक्ति
( 4 ) औचित्यपूर्ण शक्ति और अनौचित्यपूर्ण शक्ति
( 5 ) एकपक्षीय शक्ति एवं द्विपक्षीय शक्ति
( 6 ) केन्द्रीयकृत शक्ति एवं विस्तृत शक्ति ।
शक्ति के रूप ( Shakti ke Rup )
( 1 ) आर्थिक शक्ति राजनीतिक शक्ति को प्रभावित करने वाली अत्यन्त महत्वपूर्ण शक्ति , आर्थिक शक्ति है , जिन लोगों के पास आर्थिक शक्ति होती है उनका राजनीतिक शक्ति पर नियन्त्रण हो जाता है । राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में आर्थिक शक्ति का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है ।( 2 ) राजनीतिक शक्ति राजनीतिक शक्ति अन्तिम विश्लेषण में सरकार की शक्ति है । इस शक्ति की सहायता से सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में रहने वाले सभी प्रकार के व्यक्तियों और उनके द्वारा बनाये गये विभिन्न समुदायों और संघों से अपने आदेशों का पालन कराती है । राजनीतिक शक्ति अन्य शक्तियों से सर्वोच्च होती है ।
( 3 ) सैनिक शक्ति - आधुनिक युग में सैनिक शक्ति को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । लोकतान्त्रिक राज्यों में सैनिक शक्ति सरकार को प्रभावशाली बनाती है । विदेशी आक्रमणों से रक्षा और राष्ट्रीय सीमाओं को सुरक्षित रखा जाता है ।
( 4 ) राष्ट्रीय शक्ति राष्ट्रीय शक्ति के आधार पर एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के साथ सम्बन्ध स्थापित करता है और अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करता है ।
( 5 ) धार्मिक शक्ति प्राचीन राज्यों में धार्मिक शक्ति को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था तथा आज भी अनेक राज्यों में धार्मिक शक्ति एक प्रभावकारी तत्व है और कई राज्यों में तो धार्मिक शक्ति का राजनीति से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
शक्ति की प्रकृति ( Nature of Power )
शक्ति का अर्थ अथवा उसकी परिभाषा स्पष्ट करने के लिए हमें विद्वानों की परिभाषाओं के साथ - साथ उसकी प्रकृति की भी विवेचना करनी चाहिए ।( 1 ) शक्ति एक क्षमता और योग्यता जिसके जरिए दूसरों के आचरणों को नियमित , विनियमित , निर्देशित और प्रभावित किया जाता है ।
( 2 ) यह दूसरों को नियन्त्रित , निर्देशित और प्रभावित करने की ही नहीं अपितु दूसरों के नियन्त्रण तथा प्रभाव से अपने को मुक्त रखने की भी क्षमता है ।
( 3 ) यह नियन्त्रित तथा प्रभावित करने वाले तथा नियन्त्रित और प्रभावित होने वाले के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया है । यही कारण है कि लासवेल , कापलान और साइमन ने इसे प्रभाव प्रक्रिया की संज्ञा दी है ।
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( 4 ) यह एक जटिल और बहुपक्षीय प्रक्रिया है । मेकाइवर ने इसे बहुपक्षीय तत्ववाला माना है क्योंकि इसका सही रूप जानने के लिए अनेक पक्षों अथवा बातों की विवेचना करनी पड़ती है । राबर्ट डहल का भी कहना है कि शक्ति के अध्ययन की मुख्य कठिनाई यह है कि इसके अनेक अर्थ हैं । उनके अनुसार शक्ति लोगों के पारस्परिक सम्बन्धों की विशेष स्थिति है जिसके अन्तर्गत एक पक्ष - दूसरे पक्ष को प्रभावित कर ऐसा कार्य करा सकता जो किसी अन्य तरीके से नहीं कराया जा सकता ।( 5 ) सत्ता और प्रभाव आदि से घनिष्ठ रूप में सम्बद्ध होते हुए भी शक्ति उनके पर्यायवाची के रूप में नहीं है । इसकी अवधारणा उनसे भिन्न है ।
( 6 ) शक्ति राजनीति के केन्द्रीय तत्व के रूप में है । समाजशास्त्रीय आधार पर राजनीति के बारे में अध्ययन करने वाले विद्वान तो इसे राजनीति के पर्यायवाची के रूप में लेते हैं । केवल आज के विद्वानों ने ही नहीं अपितु चाणक्य ने भी दण्ड शक्ति को राजनीति का मूलाधार माना है ।
बैकर का कहना है कि राजनीति और शक्ति को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है । केटलिन ने राजनीति को शक्ति का विज्ञान माना है । विद्वानों की परिभाषाओं तथा प्रकृति की विवेचना से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि दूसरों के व्यवहारों को नियन्त्रित , निर्देशित और प्रभावित करने की क्षमता एवं योग्यता शक्ति है । यह दूसरों के प्रभाव और नियन्त्रण से अपने को मुक्त रखने की भी क्षमता है ।
यह प्रभाव और सम्बन्ध की एक जटिल और बहुपक्षीय प्रक्रिया तथा राजनीति की आधारशिला है । शक्ति केवल , स्थानीय , क्षेत्रीय और राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय के भी आधारभूत तत्वों में से एक है । मार्गेन्यू ने तो शक्ति संघर्ष को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का केन्द्रीय तत्व तथा राष्ट्रीय शक्ति को ही राष्ट्रीयहित माना है ।
ई . एच . क्विसी राइट तथा मार्टिन वाइट आदि ने भी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति का महत्व स्वीकार किया है । शक्ति की अवधारणा स्पष्ट करने के लिए हमें बल , प्रभाव और सत्ता से उसके अन्तर की विवेचना करनी चाहिए क्योंकि सामान्यतः लोग इन्हें एक - दूसरे का पर्यायवाची मानते जबकि इनकी अवधारणाएँ एक - दूसरे से भिन्न हैं ।
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