सत्ता किसे कहते हैं?
सत्ता किसे कहते हैं ? आधुनिक सन्दर्भों में सत्ता को राज व्यवस्था रूपी ' शरीर की आत्मा ' कहा जा सकता है । यह शक्ति प्रभाव और नेतृत्व का मूल उपकरण है और नीति निर्माण , समन्वय , अनुशासन और प्रत्यायोजन ( Delegation ) आदि राजनीतिक प्रक्रियाएँ सत्ता के आधार पर ही सम्भव होती हैं । औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों ही प्रकार के संगठनों में सत्ता को महत्वपूर्ण स्थिति प्राप्त होती है। और राजनीतिक जीवन मैं की अवहेलना नहीं की जा सकती । सत्ता की अनेक व्याख्याएँ की गयी हैं , किन्तु अपने सभी रूपों से सत्ता शक्ति प्रभाव एवं नेतृत्व से जुड़ी हुई है ।सत्ता की परिभाषा ( Definition of power )
बायर्सटैंड के अनुसार-
सत्ता शक्ति के प्रयोग का संस्थात्मक अधिकार है , वह स्वयं शक्ति नहीं है ' बीच ( Beach ) दूसरे के कार्य निष्पादन को प्रभावित या निर्देशित करने के लिए औचित्यपूर्ण अधिकार को सत्ता कहता है ।
एरिक रोवे के अनुसार-
रोवे ने बताया है कि वह व्यक्तियों एवं व्यक्ति समूहों को हमारे राजनीतिक निश्चयों के लिए निर्धारण तथा राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करने का अधिकार है ।सत्ता को इसलिए स्वीकार नहीं किया जाता कि वह ' प्राधिकारियों द्वारा दी जाती है । इसका वास्तविक आधार अधीनस्थ अथवा जिन्हें निर्देश दिये जाते हैं , उनकी सहमति होती है । अधीनस्थ ही जब इस बात को स्वीकार करते हैं कि आदेशों का स्रोत सही या उचित है , तब ही आदेश देने वाले अधिकारी को ' प्राधिकारी ' कहा जा सकता है । सत्ता सामान्य स्वीकृति के साथ शक्ति के प्रयोग को कहा जाता है । वह शक्ति के समान , शास्तियों ( Sanctions ) के आधार पर नहीं , अपितु उचित होने के कारण , दूसरों के व्यवहार को अपने अनुकूल बनाकर प्रभावित करने का साधन है ।
यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार
" सत्ता वह शक्ति है जो कि स्वीकृत , सम्मानित , ज्ञात एवं औचित्यपूर्ण हो ।हरबर्ट साइमन के मतानुसार-
" सत्ता के अन्तर्गत वरिष्ठ एवं अधीनस्थ के व्यवहार आते हैं । सत्ता का अस्तित्व , तब और केवल तब ही माना जाता है , जबकि ऐसा सम्बन्ध उन दोनों के बीच में स्थित हो ।
यदि अधीनस्थ के व्यवहार में परिवर्तन नहीं दिखायी देता है , तो कोई सत्ता नहीं मानी जाती , चाहे संगठन के ' कागजी 'सिद्धान्त कुछ भी क्यों न हों । " वास्तव में सत्ता स्थिति के अन्तर्गत दो प्रकार के व्यवहार होते हैं-
- आदेश के अनुपालन की प्रत्याशा , तथा
- आदेशों के अनुपालन की इच्छा ।
सत्ता की प्रकृति ( Nature of Authority )
सत्ता की प्रकृति के सम्बन्ध में प्रमुख रूप से सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है । ये दोनों ही सिद्धान्त प्रो . बीच ( Beach ) द्वारा प्रतिपादित किये गये हैं और निम्न प्रकार हैंऔपचारिक सत्ता सिद्धान्त ( Formal Theory )
इस सिद्धान्त के अनुसार सत्ता को आदेश देने का अधिकार माना जाता है और सत्ता का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर चलता है । यह अधिकार व्यवस्थाओं एवं संगठनों में विशिष्ट एवं वरिष्ठ अधिकारियों को दिया जाता है और इससे आदेश या सत्ता का एक पदक्रम बन जाता है ।स्वीकृति सिद्धान्त ( Acceptance Theory )
व्यवहारवादी या मानव सम्बन्धवादी औपचारिक सत्ता सिद्धान्त में विश्वास न रखते हुए स्वीकृति सिद्धान्त ' का प्रतिपादन करते हैं । इन यथार्थवादी अध्ययनकर्ताओं के अनुसार , सत्ता कानूनी रूप से तो केवल औपचारिक होती है , किन्तु वास्तव में सत्ता या आदेश के अधिकार की सफलता अधीनस्थों की स्वीकृति पर निर्भर करती है । जब अधीनस्थ अपनी समझ और योग्यता के दायरे में आदेशों को स्वीकार कर लेते हैं , तो यह स्थिति सत्ता स्थिति ' बन जाती है । बर्नार्ड अपनी रचना ' The Functions of the Executive ' में लिखते हैं कि अधीनस्थ आदेशों को स्वीकार करें , इसलिए चार शर्तें पूरी होनी आवश्यक हैं- अधीनस्थ अधिकारी आदेश अथवा सूचना को समझता या समझ सकता हो ,
- अपने निश्चय करने के समय उसका यह विश्वास हो कि आदेश संगठन के उद्देश्यों के साथ असंगत नहीं है ,
- निर्णय लेने के समय में वह यह सोचता हो कि समयता के रूप में सम्बन्धित आदेश उसके व्यक्तिगत हितों के अनुकूल हैं।
- वह मानसिक और शारीरिक दृष्टि से उस आदेश के अनुपालन की क्षमता रखता हो ।
सत्ता के प्रकार ( Sources of Authority )
सत्ता एवं औचित्यपूर्णता का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। मैक्स वेबर ने इस सम्बन्ध को दृष्टि में रखते हुए औचित्यपूर्णता के आधार पर सत्ता के स्रोतों एवं प्रकारों का वर्णन किया है । उसके अनुसार अपने स्रोत के आधार पर सत्ता तीन प्रकार की होती है- परम्परागत ( Traditional )
- बौद्धिक कानूनी या वैधानिक नौकरशाही सत्ता ( Rational Legal or Legal Bureaucratic Authority )
- करिश्मात्मक सत्ता ( Charismatic Authority )
( 1 ) परम्परागत ( Traditional )
जब प्रजा या अधीनस्थ वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों को इस आधार पर स्वीकार करते हैं कि ऐसा सदैव से होता आया है , तो सत्ता का यह प्रकार परम्परागत कहा जायेगा । इस प्रकार परम्परागत सत्ता का अभिप्राय शासन के उस अधिकार से है जो राजनीतिक शक्ति के अनवरत प्रयोग से उभरता है । इस प्रकार की सत्ता में प्रत्यायोजन ' ( Delegation ) मात्र अस्थायी रूप से किया जाता है और स्वेच्छाचारी होता है । अधीनस्थ सेवक समझे जाते हैं और वे आज्ञापालन , परम्पराओं के प्रतीक विशेष व्यक्ति के कारण करते हैं ; जैसे- राजतन्त्र में राजा ।( 2 ) बौद्धिक कानूनी या वैधानिक नौकरशाही सत्ता ( Rational Legal or Legal Bureaucratic Authority ) -
जब अधीनस्थ किसी नियम को इस आधार पर स्वीकार करते हैं कि वह नियम उन उच्च स्तरीय अमूर्त नियमों के साथ सम्मत है। तो वे उसे औचित्यपूर्ण समझते हैं। तब इस स्थिति में सत्ता को बौद्धिक कानूनी माना जाता है । यह सत्ता संवैधानिक नियमों के अन्तर्गत धारण किये गये पद से प्राप्त होती है । अमेरिका में जब राष्ट्रपति पद का कोई उम्मीदवाद निर्वाचक मण्डल का बहुमत प्राप्त कर लेता है अथवा जब भारत में लोकसभा के सदस्य बहुमत से किसी को अपना नेता निर्वाचित कर उसे प्रधानमन्त्री पद पर प्रतिष्ठित कर देते हैं , तब यह सत्ता का बौद्धिक तार्किक आधार ही होता है । इसमें सत्ता का प्रत्यायोजन बौद्धिक आधार पर किया जाता है और कर्मचारीगण वैधानिक रूप से स्थापित निर्वैयक्तिक आदेशों के आधार पर आज्ञापालन करते हैं । सत्ता का यह रूप आधुनिक नौकरशाही को अपने विशुद्ध रूप में प्रकट करता है ।( 3 ) करिश्मात्मक सत्ता ( Charismatic Authority )
जब अधीनस्थ वरिष्ठ सत्ताधारी के आदेशों को इस आधार पर न्यायसंगत मानते हैं कि उन पर सत्ताधारी का व्यक्तिगत प्रभाव है , तब इसे करिश्मात्मक सत्ता कहते हैं । इस सत्ता स्थिति में प्रायः कोई प्रत्यायोजन नहीं होता है और अधीनस्थ अथवा कर्मचारी सत्ताधारी के व्यक्तिगत सेवक के रूप में आचरण करते हैं । अधीनस्थ अनुयायी होते हैं और अपने प्रिय नेता के करिश्माती एवं आदर्शवादी व्यक्तित्व के कारण उसके आदेशों का पालन करते हैं । स्पष्टतया मैक्स वेबर केवल औचित्यपूर्ण सत्ता का विश्लेषण प्रस्तुत करता है । मैक्स वेबर बताता है कि बौद्धिक कानून सत्ता कमजोर एवं भजनशील होती है ; अतः उसे सबलता प्रदान करने के लिए उसमें परम्परागत एवं करिश्माई तत्वों को शामिल किया जाना चाहिए ।संस्थात्मक शक्ति की दृष्टि से सत्ता का विभिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है।
इस सत्ता प्रयोग के आधार पर व्यापक सन्दर्भ में सत्ता के और भी प्रकार हो सकते हैं-
( i ) क्षेत्रीयता की दृष्टि से राष्ट्रीय प्रान्तीय और स्थानीय ,
( ii ) अपेक्षाकृत व्यापक सन्दर्भ की दृष्टि से राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय ,
( iii ) संवैधानिक दृष्टि से संविधान से प्राप्त अथवा साधारण कानूनों से प्राप्त ,
( iv ) सरकार के परम्परागत अंगों के आधार पर कार्यपालिका , व्यवस्थापिका न्यायपालिका सम्बन्धी ,
( v ) राजनीतिक दृष्टि से राजनीतिक तथा प्रशासनिक ,
( vi ) संख्यात्मक दृष्टि से एकल , बहुल , निगमात्मक , आयोगात्मक अथवा लात्मक , की आदि हो सकती है ।
( vii ) विभिन्न विषयों की दृष्टि से सत्ता आर्थिक , सामाजिक , धार्मिक
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