पर्यावरणीय मनोविज्ञान की प्रकृति ( Nature of Environmental Psychology )
पर्यावरणीय मनोविज्ञान के अन्तर्गत मानवीय व्यवहार एवं कल्याण से सम्बन्धित अध्ययन की शुरुआत, वैज्ञानिक एवं सामाजिक सम्बद्धता के फलस्वरूप 1960 में हुई। सामाजिक स्तर पर बढ़ रही सामुदायिक समस्याओं, जैसे अत्यधिक भीड़, प्राकृतिक संसाधनों की कमी, पर्यावरणीय गुणवत्ता में कमी, जनसंख्या का उच्च घनत्व स्तर पर फैलाव आदि के विषय मे बढ़ती जानकारी के कारण पर्यावरण के खतरों के प्रति, आज प्रत्येक व्यक्ति चिन्तन है।
आज प्रत्येक व्यक्ति परमाणु एवं नाभिकीय दुर्घटनाओं, वाहनों की भीड़-भाड़, मकानों की बनावट आदि समस्याओं से अपने को संलग्न महसूस कर रहा है। इसी कारण कई मनोवैज्ञानिकों ने इस प्रकार की पर्यावरणीय समस्याओं के परिणामों के विषय में अनेकों तरह के अध्ययन करना किया।
पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान हेतु सम्भावित सुझाव देने के लिए आज विभिन्न मनोवैज्ञानिक मानवीय व्यवहार तथा पर्यावरण से सम्वन्धित अधिकाधिक प्रायोगिक ज्ञान एकत्र नने में लगे हुए हैं। साथ ही मानवीय व्यवहार के विभिन्न प्रतिरूपों (Models) हेतु महत्वपूर्ण सूचनाएं एकत्र करने में लगे हुए हैं जिससे पर्यावरणीय मनोविज्ञान का विस्तार होता जा रहा है।
देश के अनेक विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रम में पर्यावरणीय मनोविज्ञान (Environmental Psychology) को विषय के रूप में स्थान दे रहे हैं, जिनमें गोरखपुर विश्वविद्यालय का नाम प्रमुख है। पर्यावरणीय मनोविज्ञान (Environmental Psychology) की प्रगति का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि अनेक मनोवैज्ञानिक तथा सम्बन्धित विषय के वैज्ञानिक, पर्यावरणीय मनोविज्ञान (Environmental Psychology) को अध्ययन हेतु एक स्वतंत्र एवं महत्वपूर्ण - विषय के रूप में स्वीकार करते हैं।
उपर्युक्त तकों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आज के संदर्भ में पर्यावरणीय मनोविज्ञान (Environmental Psychology) की विषय वस्तु मनोविज्ञान जगत के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है। साथ ही पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान हेतु पर्यावरणीय मनोविज्ञान अत्यधिक सहायक है।