इतिहास का अन्य विषय से सहसंबंध || Correlation of history with other subjects
इतिहास के अर्थ से स्पष्ट है कि इतिहास मानव जाति के विकास तथा उसके विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली गतिविधियों का अध्ययन है। मानव का विकास एवं गतिविधियां अनेकानेक क्षेत्रों से सम्बन्धित होती है जैसे अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, भूगोल आदि। यदि हम ये कहें कि ये गतिविधियां जीवन के हर पहलू से ही सम्बन्धित हैं, तब भी कोई अतिश्योक्ति नहीं है।
इस दृष्टिकोण से यदि हम देखें तो पाएंगे कि इतिहास का सभी विषयों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। मानव जीवन का कोई भी ऐसा पहलू या क्षेत्र नहीं है, जो इतिहास की परिधि से बाहर हो। इतिहास का क्षेत्र इतना व्यापक है कि इसे हम सभी सामाजिक विषयों की पृष्ठिभूमि कह सकते हैं। इससे स्पष्ट है कि इतिहस प्रायः अन्य सामाजिक विज्ञानों से निकटता से सम्बन्धित है। इसे समझने के लिए इतिहास और सामाजिक विज्ञान विषयों में सहसम्बन्ध अग्रलिखित है -
सहसम्बन्ध का अर्थ ( meaning of correlation )
सहसम्बन्ध का अर्थ है दो या दो से अधिक तथ्यों के मध्य सहसम्बन्धता की दिशा तथा मात्रा। जहां तक शिक्षण विषयों के मध्य सहसम्बन्ध का प्रश्न है, इसका अर्थ है दो या अधिक विषयों के ज्ञान को परस्पर सम्बन्धित करना। किसी एक विषय को पढ़ाते समय उसके तथ्यों को दूसरे विषयों के साथ सम्बन्धित करते हुए पढ़ाया जाय तो वह दो विषयों के मध्य शिक्षण सहसम्बन्ध होता है, जैसे-इतिहास में अकबर के शासनकाल की विशेषताओं को बताते समय उस समय की सामाजिक स्थिति, वैज्ञानिक प्रगति आदि पर भी प्रकाश डालते चलें तो इतिहास का सहसम्बन्ध समाजशास्त्र राजनीतिशास्त्र तथा विज्ञान से स्थापित होता चलेगा।
शिक्षण में 'सहसम्बन्ध' प्रत्यय का प्रयोग सर्वप्रथम हरबर्ट ने किया। हरबर्ट ने ही सर्वप्रथम यह मत व्यक्त किया कि यदि कक्षा में कोई एक विषय पढ़ाते समय उस विषय का समन्वय या सहसम्बन्ध अन्य उपयुक्त विषयों के साथ स्थापित कर दिया जाय तो इससे शिक्षण न केवल रोचक बनेगा, अपितु इससे शिक्षण व्यवहारिक, जीवनोपयोगी, बोधगम्य तथा वास्तविक भी बनेगा।
इतिहास का अन्य विषयों से सहसम्बन्ध ( Correlation of history with other subjects )
1. इतिहास एवं भूगोल ( History and Geography )
इतिहास और भूगोल में निकट का सम्बन्ध है। दोनों एक दूसरे के पूरक है। इतिहास की आधुनिक पाठ्यवस्तु एकांगी न होकर सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनैतिक परिस्थितियों का अध्ययन करती है। इनको अतीत काल की भौगोलिक परिस्थितियों ने अधिक प्रभावित किया है। मानवीय क्रियाएं भौगेलिक तथ्यों द्वारा नियन्त्रित होती है। अतीत काल में मानव उनके साथ अनुकूलन करता रहा है।
मानव प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिये प्रयत्नशील है। आज वैज्ञानिक आविष्कारों ने भौतिक दूरी को कम कर दिया है। मानव पृथ्वी तक ही सीमित नहीं रहा। वह चन्द्रमा पर भी पहुँच गया। विज्ञान ने मानव क्रियाओं में आमूल रूप परिवर्तन कर दिया है। कृषि के यन्त्रों को बिल्कुल बदल दिया गया है। भारत के इतिहास में हिमालय उत्तरी आक्रमणों से सुरक्षा करता रहा था। परन्तु सर 1962 ई0 में चीन के आक्रमण से सुरक्षा नहीं कर सका था। अतः इसमें कोई सन्देह नहीं कि अतीत काल से इतिहास की विषय-वस्तु पर भौगोलिक तथ्यों का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है।
2. इतिहास तथा साहित्य ( History and Literature )
इतिहास और साहित्य में निकट सम्बन्ध है। इन दोनों विषयों की निकट सम्बन्धता के कारण कुछ विद्वानों ने यहां तक कह दिया है कि इतिहास को साहित्य के समान ही पढ़ाना चाहिए। साहित्य-सृजन एक कला है और इतिहास भी एक कला है इसलिए इतिहास को साहित्य से पृथक नहीं किया जा सकता है, क्योंकि दोनों ही कला है। वास्तव, में साहित्य में भी इतिहास के भण्डार होते हैं।
इस दृष्टि से अंग्रेजी साहित्य बड़ा ही सम्पन्न है। अंग्रेजी भाषा में ऐतिहासिक साहित्य की अधिकता है। इसी कारण चैथम का कहना है कि मैंने इतिहास का संपूर्ण ज्ञान शेक्सपीयर दे नाटकों से प्राप्त किया है।" हिन्दी साहित्य में श्री रामधारी सिंह दिनकर का 'साहित्य', वृन्दावन लाल वर्मा वर्मा की मृगनयनी' आदि साहित्यिक रचनाएँ इतिहास से सम्बन्धित है। इसी प्रकार हम हिन्दी भाषा षा में पद्य, गद्य, नाटक, उपन्यास, कहानी आदि सभी कुछ इतिहास से संबंधित पाते हैं।
इतिहास पर भी साहित्य की अमिट छाप पड़ती है। साहित्य जनमानस के आन्दोलित, उत्तेजित, प्रेरित एवं जागरूक होने से नई घटनाएँ घटित होती है, जो नये इतिहास की नींव बनाती है। इस प्रकार हम पाते हैं कि जहाँ इतिहास साहित्य से प्रभावित है, वहीं साहित्य स्वयं भी इतिहास का ऋणी है। यह पारस्परिक सम्बन्धता ही दोनों के मध्य सहसम्बन्ध को स्पष्ट करती है इतिहास साहित्य का ही एक अंग है।
शिक्षा में वैज्ञानिक प्रवृत्ति ने इसे अलग विषय की मान्यता दी। परन्तु साहित्य की विषय वस्तु का विश्लेषण करने से ऐसा प्रतीत होता है कि साहित्य की अधिकांश विषय-वस्तु इतिहास से ही ली गयी है। इतिहास में महाकाव्य काल का शिक्षण करने पर रामायण के प्रसंगों से अतीत काल की सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों का बोध व्यापक रूप से कराया जा सकता है।
3. इतिहास तथा नागरिक शास्त्र ( History and Civics )
इतिहास की विषय-वस्तु कालक्रम के उत्थान तथा विकास का विवरण है। जबकि नागरिक शास्त्र वर्तमान पर अधिक बल देता है। इतिहास में अतीत का अध्ययन वर्तमान को समझने के लिए किया जाता है। वर्तमान नागरिकशास्त्र भविष्य में अतीत का इतिहास कहलाता है। इस प्रकार इतिहास तथा नागरिकशास्त्र के सह-सम्बन्ध स्थापित करने का प्रश्न ही नहीं उठता हैं क्योंकि इनमें सम्बन्ध पहले से ही अन्तर्निहित है।
राष्ट्र का विकास तथा उत्थान इतिहास का अंग है। फ्रीमेन के अनुसार इतिहास का प्रमुख उद्देश्य अत्तीत काल की राजनीति को ज्ञात करना है। इतिहास का सह-सम्बन्ध मानव समाज के धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक, आध्यात्मिक, कलात्मक तथा राजनैतिक आदि के विकास से है। मानव जाति किस प्रकार प्रगति करके वर्तमान स्तर पर पहुँचा है इसकी जानकारी हमें नागरिक शास्त्र से मिलती है। इस प्रकार इतिहास का राजनैतिक पक्ष ही नागरिकशास्त्र है।
4. इतिहास तथा अर्थशास्त्र ( History and Economics )
इतिहास और अर्थशास्त्र में गहरा सम्बन्ध है। समाज की आर्थिक स्थिति ही ऐतिहासिक घटनाओं का निर्माण तथा निर्धारण करती है। अनेक युद्ध केवल इसलिए जीते गए क्योंकि विजेता अधिक साधन सम्पन्न था तथा अनेक आक्रमण केवल इसलिए हुए कि आक्रमण समृद्ध देश से लूटकर अपार सम्पदा अपने साथ ले जाय। समाज की आर्थिक स्थिति के कारण ही प्राचीन किले, प्रसाद, कला तथा साहित्य की प्रगति अतीत में देखी जाती है।
अतीत में जो समाज असभ्य, जंगली, निर्धन तथा आदिम अवस्था में थे, उनके इतिहास जानने के स्रोत सहज ही उपलब्ध हो जाते हैं। आर्थिक अवस्था में परिवर्तन स्वतः ही इतिहास में परिवर्तन ला देते हैं। इतिहास बताता है कि अतीत में अनेक राजाओं, बादशाहों, सुल्तानों आदि ने केवल भौतिक सुख के उपभोग के लिए ऐतिहासिक घटनाएँ घटित की, तो कुछ राजा-महाराजा भोग विलास में इतने लिप्त हो गए कि उन्हें अपने सिहांसन से हाथ तक धोना पड़ा।
आर्थिक व्यवस्था इतिहास का एक महत्वपूर्ण पक्ष है, जो यह बताता है कि आर्थिक व्यवस्था समाज के इतिहास को प्रभावित करती है और इतिहास समाज की आर्थिक स्थिति को। आक्रमण के बाद, किसी अन्य ऐतिहासिक घटना के बाद निश्चय ही समाज की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि इतिहास और अर्थशास्त्र एक दूसरे को घनिष्ठ रूप में प्रभावित करते हैं।
इतिहास की शिक्षा द्वारा न केवल भूत के ज्ञान को वर्तमान से सम्बन्धित करने का प्रयास किया जाता है बल्कि अतीत की घटनाओं का विवेचन तर्कपूर्ण ढंग से किया जाता है। इतिहास मानव जाति के अनुभवों का यथार्थ भण्डार है। इतिहास का अध्ययन वर्तमान को सरल तथा सुगम बनाता है।
अर्थशास्त्र मानव के आर्थिक प्रयत्नों और उनकी सफलताओं का अध्ययन करता है। आर्थिक क्रियायों की सफलता, अतीत की आर्थिक घटनाओं तथा उनकी परिस्थितियों के ज्ञान पर ही आधारित होती है। अतः अर्थशास्त्र का इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाओं से सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है।
वैज्ञानिक प्रवृत्ति ने इतिहास को वैज्ञानिकता प्रदान की है और इंतिहास एक वैज्ञानिक विषय बना। इस मत के समर्थकों का कहना है कि इतिहास विज्ञान है। अतः उसका सम्बन्धं साहित्य से नहीं होना चाहिए। वैज्ञानिकता की पोशाक पहनकर इतिहास संक्षिप्त तथा निश्चयात्मक विषय हो गया और उसने काल्पनिकता तथा साहित्य रोचकता को तिलांजलि दे दी। इस स्थिति में इतिहास तथा साहित्य में समन्वय स्थापित नहीं किया जा सकता। इस मत के समर्थक समन्वय पद्धति में निरन्तर उलझन ही उत्पन्न करेंगे।