नवीन वामपंथी एवं हिंसा
नवीन वामपंथी: मार्क्स तथा नव - वामवाद में अन्तर निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता मार्क्सवाद हिंसा को एक आवश्यक बुराई समझता है । नव - वामवाद इसे एक मात्र स्वच्छता लाने वाली शक्ति के रूप में देखता है । मार्क्सवाद अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हिंसा के प्रयोग को न्यायोचित ठहराता है , लेकिन जब उद्देश्य पूरा हो जाता है तो हिंसा के उपयोग की निन्दा की जाती है अर्थात् हिंसा के उपयोग को पहले एक वर्गहीन तथा बाद में एक राज्यहीन समाज की स्थापना के लिए आवश्यक और न्यायोचित समझा जाता है , वर्गों की समाप्ति के पश्चात् इसके अस्तित्व का कोई औचित्य नहीं रह जाता है ।नव - वामवादियों की स्थिति इससे भिन्न है , क्योंकि वे हिंसा को एक अनिवार्य शक्ति समझते हैं जो इसके विरोधी पक्ष को कमजोर करती है । ऐतिहासिक तथा व्यावहारिक आधार पर मार्क्यूज हिंसा को उचित बतलाता है । उसके अनुसार अन्याय के खिलाफ दलितों का संघर्ष उचित है । मार्क्यूज बतलाता है कि दलितों के सहिष्णुता सम्बन्धी विचार उनके लिए ही घातक होता है ।
उसका कहना है कि अब “ नये प्रकार की सहिष्णुता की आवश्यकता है , " वामवाद की सहिष्णुता , तोड़ - फोड़ की सहिष्णुता , क्रान्तिकारी हिंसा की सहिष्णुता , लेकिन वामवाद को सहन न करना , मौजूदा संस्थाओं का सहन न करना , समाजवाद के प्रति किसी विरोध को सहन न करना । यथा हिंसा का पक्षपाती होने के कारण हिंसा के सम्बन्ध में फेनो का विचार दृष्टव्य है ।
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सहिष्णुता के सम्बन्ध में तर्क यह दिया जाता है कि सहिष्णुता आदर्श का सम्बन्ध उदार लोकतान्त्रिक परम्परा से है जिसने अपने आपको शुष्क कर लिया है । उसका कहना है कि अब इस प्रकार की सहिष्णुता की आवश्यकता नहीं है , क्योंकि यह विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के विशेषाधिकार रहित लोगों पर प्रभुत्व का साधन बन जाता है ।उसका कहना है कि अब “ नये प्रकार की सहिष्णुता की आवश्यकता है , " वामवाद की सहिष्णुता , तोड़ - फोड़ की सहिष्णुता , क्रान्तिकारी हिंसा की सहिष्णुता , लेकिन वामवाद को सहन न करना , मौजूदा संस्थाओं का सहन न करना , समाजवाद के प्रति किसी विरोध को सहन न करना । यथा हिंसा का पक्षपाती होने के कारण हिंसा के सम्बन्ध में फेनो का विचार दृष्टव्य है ।
उसका कहना है कि " केवल हिंसा , लोगों द्वारा की गई हिंसा , नेताओं द्वारा सिखाई गई और संगठित की गई हिंसा से लोग सामाजिक सच्चाइयों को समझ सकने की स्थिति में हो जाते हैं और वे उन्हें ऐसा गुरु प्रदान करते हैं व्यक्तियों के स्तर पर हिंसा स्वच्छता की शक्ति है " हिंसा स्वदेशी व्यक्ति को अपनी हीनता , निष्क्रियता , निराशा और हीनता के मान से मुक्त कर देती है , यह उसे निर्भीक बना देती है और उसमें आत्मविश्वास और सम्मान जगा देती है । " उसके अनुसार जब लोगों ने राष्ट्रीय स्वतन्त्रता में हिंसात्मक रूप से भाग लिया है , तो वे यह स्वीकार नहीं करते कि कुछ लोग अपने लिए ' स्वतन्त्रताकारी ' घोषित कर सकें ।
हिंसा सभी मौजूदा संस्थाओं और राजनीतिक सम्बन्धों में व्याप्त है । " " अतः उनको प्रभावित करने या और अधिक अच्छे रूप में प्रस्तुत करने का यही तरीका है कि हिंसा का उपयोग किया जाये । " इस सम्बन्ध में सार्वे का विचार इतना दृढ़ है कि " वह ‘ प्रति - तीव्रीकरण ' के विचार का समर्थक हो गया है जिसका यह अभिप्राय है कि एक और विश्व युद्ध कीमत पर भी युद्ध हो । उसने बड़े स्पष्ट शब्दों में इस विचार को समर्थन प्रदान किया है कि अधीन जातियों को राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सभी सम्भव हिंसात्मक उपायों से युद्ध करना चाहिये ।
मार्क्सवादी हिंसा की समस्या को आर्थिक तत्व से जोड़ते हैं । लेकिन ऐतिहासिक घटनाओं को निपट हिंसा से न जोड़कर भौतिक शक्ति के साथ जोड़ता है । यद्यपि वह यह स्वीकार करता है कि " भौतिक शक्ति के अलावा है और किसी तरह से किसी मुख्य ऐतिहासिक समस्या का कभी समाधान नहीं किया गया इसलिये किन्हीं परिस्थितियों में हिंसा आवश्यक और उपयोगी दोनों ही है , लेकिन ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जिनमें हिंसा कोई उपयोगी परिणाम पैदा नहीं कर सकती है । "
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हिंसा से दैदीप्यमान होकर लोगों की अन्तरात्मा हर प्रकार के शान्तिकरण के खिलाफ विद्रोह करती है । इसके पश्चात् डींग मारने वालों , अवसरवादियों और जादूगरों के लिए ऐसा करना मुश्किल हो जाता है । " सात्रें भी हिंसा को उचित बतलाते हुए कहता है कि उसके समक्ष समस्या यह है कि इस युक्ति को कैसे सिद्ध किया जाए कि वामवादियों को हिंसा का मात्र हिंसा से जवाब देना चहिए । " कोई व्यक्ति राजनीति में तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि वह हत्या और आतंकवाद जैसे हिंसात्मक कार्यों से अपने हाथ गंदे करने को तैयार न हो ।हिंसा सभी मौजूदा संस्थाओं और राजनीतिक सम्बन्धों में व्याप्त है । " " अतः उनको प्रभावित करने या और अधिक अच्छे रूप में प्रस्तुत करने का यही तरीका है कि हिंसा का उपयोग किया जाये । " इस सम्बन्ध में सार्वे का विचार इतना दृढ़ है कि " वह ‘ प्रति - तीव्रीकरण ' के विचार का समर्थक हो गया है जिसका यह अभिप्राय है कि एक और विश्व युद्ध कीमत पर भी युद्ध हो । उसने बड़े स्पष्ट शब्दों में इस विचार को समर्थन प्रदान किया है कि अधीन जातियों को राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सभी सम्भव हिंसात्मक उपायों से युद्ध करना चाहिये ।
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" यह बात उल्लेखनीय है कि हिंसा के उपयोग के बारे में नव - वामवादियों द्वारा दी गई व्याख्याएँ आंशिक रूप में मार्क्सवादी हैं । यहाँ नव - वामवादियों और मार्क्सवादियों के बीच महत्वपूर्ण विभेदक रेखा खींची जा सकती है जहाँ नव वामवादी हिंसा का समर्थन करते हैं तथा विभिन्न तर्कों के द्वारा हिंसा की सार्थकता का उद्घोष करते हैं वहीं मार्क्सवादी के उपयोग को उपस्थित परिस्थितियों की स्थिति से जोड़ने का प्रयास करता है ।मार्क्सवादी हिंसा की समस्या को आर्थिक तत्व से जोड़ते हैं । लेकिन ऐतिहासिक घटनाओं को निपट हिंसा से न जोड़कर भौतिक शक्ति के साथ जोड़ता है । यद्यपि वह यह स्वीकार करता है कि " भौतिक शक्ति के अलावा है और किसी तरह से किसी मुख्य ऐतिहासिक समस्या का कभी समाधान नहीं किया गया इसलिये किन्हीं परिस्थितियों में हिंसा आवश्यक और उपयोगी दोनों ही है , लेकिन ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जिनमें हिंसा कोई उपयोगी परिणाम पैदा नहीं कर सकती है । "
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